Sunday 4 May 2014

गांवों के विकास पर अरबों का सालाना खर्च


मित्रों,
केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, ग्रामीण विकास पर सब का जोर है. गांवों के विकास से ही देश का विकास संभव है, यह सभी जानते हैं. देश की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, यह सच भी सब को पता है. जाहिर है कि विकास के सवाल पर जब भी बात होगी, गांव उसका सबसे बड़ा विषय होगा. आजादी से अब तक गांवों के विकास के लिए सरकार ने अनेक योजनाएं बनायीं. हर साल कई सौ करोड़ रुपये गांवों के विकास के लिए दिये गये. वर्ष 2013-14 के केंद्रीय बजट में ग्रामीण विकास के लिए 80,194 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे. केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रलय ने 2014-15 के अंतरिम बजट में इसे बढ़ा कर 82202 करोड़ किया है. ग्रामीण विकास से जुड़े पेयजल एवं स्वच्छता, पंचायती राज, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, महिला एवं बाल विकास, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता, आवास एवं गरीबी उन्मूलन, जनजातीय कार्य तथा अल्पसंख्यक कल्याण इन आठ मंत्रलयों का बजट 97,805 करोड़ का है. कृषि और मानव संसाधन विकास मंत्रलय के के भी अपने बजट हैं, जो अरबों में हैं. इनका भी बड़ा हिस्सा गांवों में खर्च होने हैं. राज्य के मामले में ग्रामीण कार्य विभाग है, जो केंद्र और राज्य सरकार की गांवों के विकास से जुड़ी योजनाओं का संचालन करता है. इसके पास करीब 21 ऐसी योजनाएं हैं.  ये योजनाएं योजना एवं गैर योजना दोनों मद की हैं. इसके तहत सड़क, पुल-पुलिया एवं अन्य आधारभूत संसाधन निर्माण के कार्य किये जाते हैं. सांसद और विधायक को अपने क्षेत्र के विकास के लिए मिलने वाली राशि (एमएलए-एमपी फंड) भी इस विभाग द्वारा खर्च की जाती है. इसका हिसाब-किताब भी इसी विभाग के पास रहता है. इस राशि को जिन बड़ी योजनाओं पर खर्च किया जाता है, उनकी निगरानी के लिए कई स्तर पर समितियां हैं. पंचायती राज संस्थाओं के अस्तित्व में आने के बाद ग्रास रूट पर निगरानी की संवैधानिक संरचना तैयार हुई है. सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 आम आदमी को बड़ी ताकत देता है. कोई भी व्यक्ति महज दस रुपये फीस देकर जानकारी हासिल कर सकता है. अगर वह बीपीएल श्रेणी में आता है, तो उसे बिना शुल्क के सूचना मिलेगी. यानी गांवों के विकास के लिए न तो पैसों की कमी है, न योजनाओं की और निगरानी की. इसके बाद भी गांवों के लिए सरकारी खजाने से निकला पैसा गांवों तक पूरा-पूरा नहीं पहुंच पा रहा है. इस स्थिति को बदलना आम आदमी की बड़ी चुनौती है. इसके लिए सबसे बड़ा अधिकार जानकारी है. हम इस अंक में सरकार की उन बड़ी योजनाओं के बारे में जानकारी दे रहे हैं, जो ग्रामीण विकास के लिए अहम हैं और जिन पर ज्यादा राशि खर्च को रही है.

आरके नीरद

प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत हर गांव को सड़क से जोड़ने की कोशिश है, ताकि वहां विकास के संसाधन बढ़ें. इस योजना के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को भरपूर आवंटन दिया है. इस साल के अंतरिम बजट में केंद्र सरकार ने  1387.40 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. यह शत-प्रतिशत केंद्र प्रायोजित योजना है. इसकी शुरुआत  25 दिसंबर, 2000 को हुई थी. इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में 500 या इससे अधिक आबादी वाले सड़क संपर्क से वंचित गांवों को बारहमासी सड़कों से जोड़ना है. भारत निर्माण के अंतर्गत वर्ष 2009 तक समयबद्ध तरीके से मैदानी क्षेत्रों में 1000 से ज्यादा जनसंख्या वाले आबाद क्षेत्रों को जोड़ा जा रहा है.
भारत सरकार ने ग्रामीण सड़कोंको भारत निर्माण के छह घटकों में से एक घटक बनाया है. इसमें मैदानी क्षेत्रों में 1000 और इससे अधिक जनसंख्या तथा पर्वतीय एवं जनजातीय क्षेत्रों में 500 एवं इससे अधिक जनसंख्या वाले वैसे गांवों और गांव समूहों को बारहमासी सड़क उपलब्ध कराने का लक्ष्य है, जो सड़क से जुड़े नहीं हैं. वर्ष 2013-14 के बजट में इस योजना के तहत 21,700 करोड़ रुपये आवंटित किये गये. वर्ष 2014-15 के अंतरिम बजट में सड़क निर्माण के लिए  1387.40 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है.

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम

राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना शुरुआत प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने दो फरवरी, 2006 को आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले से की थी. यह गांवों के लोगों की बेरोजगारी, भूख और गरीबी को दूर करने के उद्देश्य से शुरू की गयी एक महत्वाकांक्षी योजना है.  पहले चरण में वर्ष 2006-07 के दौरान देश के 27 राज्यों के 200 चुनिंदा जिलों में इस योजना को लागू किया गया था.  इसमें सबसे अधिक 23 जिले बिहार के थे. पहले चरण के लिए चुने गये 200 जिलों में 150 वैसे जिले शामिल थे, जहां काम के बदले अनाज योजनाका इस योजना में विलय किया गया.  एक अप्रैल, 2008 से इस योजना को पूरे देश में लागू किया गया.
इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्र के हर परिवार के एक सदस्य को साल में कम-से-कम 100 दिन अकुशल श्रम वाले रोजगार की गारंटी दी गयी है. यानी एक वित्तीय वर्ष में हर परिवार को 100 दिनों का रोजगार मिलता है, जिसे परिवार के वयस्क सदस्य आपस में बांट सकते हैं. शुरू में इसके तहत जो मजदूरी दी जाती थी, वह खेतिहर मजदूर को मिलने वाली मजदूरी के आधार पर तय  थी. यानी किसी को एक दिन में साठ रुपये से कम नहीं मिलते थे. वर्ष 2011-12 में वास्तविक मजदूरी दर को बढ़ा कर 120 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया है. बाद में इस योजना का नामकरण मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) किया गया. केंद्रीय ग्रामीण विकास विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2011-12 में 19 जनवरी, 2012 तक 3.80 करोड़ परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराये गये और 122.37 करोड़ श्रम दिवस रोजगार का सृजन किया गया. इनमें से 60.45 करोड़ महिला, 27.27 करोड़ अनुसूचित जाति तथा 20.97 करोड़ अनुसूचित जनजाति के लिए थे. वर्ष 2012-13 के बजट में 33,000 करोड़ रुपये का आवंटन इस योजना के तहत किया गया था तथा वर्ष 2013-14 के लिए 33,000 करोड़.

ऐसे करें सूचनाधिकार का इस्तेमाल

अगर आप सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत इन योजनाओं से जुड़ी सूचनाएं प्राप्त करना चाहते हैं, इस विभाग के जन सूचना पदाधिकारी को, जो राज्य मुख्यालय से जिला मुख्यालय तक में नामित हैं, दस रुपया सूचना शुल्क के साथ आवेदन दे सकते हैं. यह शुल्क आप कार्यालय में नगद जमा कर उसकी रसीद ले सकते हैं अथवा पोस्टल ऑर्डर, बैंकर्स चेक, डिमांड ड्राफ्ट या नन जुडिशियल स्टांप के रुप में भी यह राशि जमा करा सकते हैं. अगर आप बीपीएल सूची में आते हैं, तो आपको कोई शुल्क नहीं देना है. इसके बदले अपने आवेदन में इस बात का उल्लेख करना होगा कि आप बीपीएल परिवार से आते हैं तथा बीपीएल कार्ड की फोटो कॉपी आवेदन के साथ लगानी होगी. आपका आवेदन मिलने के 30 दिनों के अंदर अगर आपको सूचना नहीं दी जाती है या अधूरी अथवा भ्रामक सूचना ुदी जाती है, तो आप उसी विभाग में प्रथम अपील दायर कर सकतें हैं. प्रथम अपील को सामान्यत: 30 दिनों में और विशेष परिस्थिति में 45 दिनों में निबटाया जाना है. ऐसा नहीं होने पर राज्य सूचना आयोग में आप दूसरी अपील दायर करें.
इस सदी में ग्रामीण जीवन में सुधार लाने के लिए केंद्र सरकार ने रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्य सुरक्षा और लड़कियों के से जुड़ी करीब दो दर्जन योजनाएं शुरू की हैं. इन योजनाओं पर सरकार के अब तक करोड़ों रुपये खर्च हुए हैं. यह बात दीगर है कि इनका कितना लाभ मिला, इसे लेकर सरकार के दावे और जमीनी हकीकत पर बहस की पूरी गुंजाइश अब भी है.

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