Monday 17 February 2014

महिलाओं के लिए खास कानून



मित्रों,
इस अंक में हम महिलाओं के अधिकार, उनके मान-सम्मान और सुरक्षा को लेकर देश के प्रमुख कानूनों की चर्चा कर रहे हैं. हम वैसी घटनाओं और हरकतों को लेकर कानून के प्रावधानों की चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें आमतौर पर महिलाएं चुपचाप सहन कर लेती हैं, जबकि इनसे निबटने के लिए कानून और सहायता उपलब्ध हैं. महिलाएं चाहें, तो उनकी मदद ले सकती हैं और शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक उत्पीड़न से खुद को बचा सकती हैं. छेड़छाड़, मेले-ठेले में पुरुषों द्वारा जानबूझ कर की जाने वाली धक्का-मुक्की, ईल टिप्पणी और इशारे महिलाओं को आतंकित करने वाली घटनाएं हैं. ऐसी घटनाओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई संभव है. उसी तरह ससुराल में घर के अंदर किये जाने वाले अमानवीय व्यवहार को रोकने की भी कानूनी व्यवस्था है. दहेज उत्पीड़न को लेकर तो कानून और अदालत बेहद संवेदनशील है. इन सब का लाभ लिया जाना चाहिए. विवाह का निबंधन भी जरूरी है. यह पुरुष और महिला दोनों के हित में हैं. हम इन सब की चर्चा कर रहे हैं.
       आरके नीरद
अनिवार्य विवाह निबंधन
विवाह जीवन और समाज की एक सामान्य और जरूरी संस्कार है. सदियों से चली आ रही इस रस्म को पूरा करने में आम तौर पर किसी कानून को बीच में नहीं लाया जाता, लेकिन इसके लिए भी कानून है, जो विवाह को अपनी (कानूनी) मान्यता देता है. इसमें विवाह के पंजीयन का प्रावधान है. भारत में विवाह आमतौर पर हिंदू विवाह अधिनियम 1955 या विशेष विवाह अधिनियम 1954 में से किसी एक अधिनियम के तहत पंजीकृत किया जा सकता है, लेकिन कोई भी कानून बाल विवाह या कम उम्र में विवाह को मान्यता नहीं देता.
विवाह को कानूनी मान्यता : कानूनी तौर पर विवाह के लिए पुरुष की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और महिला की न्यूनतम आयु 18 वर्ष होनी चाहिए. हिंदू विवाह के दोनों पक्षों (वर और वधु) को अविवाहित या तलाकशुदा होने चाहिए. यदि विवाह पहले हो गया है, तो उस शादी की पहली पत्नी या पति जीवित नहीं होने चाहिए. यानी एक पति या एक पत्नी के जीवित रहते तभी दूसरी शादी को कानून मान्यता देता है जिसमें पहली शादी को लेकर तलाक हो चुका हो. इसके अतिरिक्त दोनों पक्षों को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होने चाहिए. विशेष विवाह अधिनियम विवाह अधिकारी द्वारा विवाह संपन्न करने तथा पंजीकरण करने की व्यवस्था करता है.
विवाह प्रमाण-पत्र क्या है
जब किसी विवाह का पंजीयन यानी रजिस्ट्रेशन होता है, तो पंजीकरण का प्रमाण-पत्र दिया जाता है. इसका लाभ यह है कि दोनों पक्षों के विवाह बंधन में बंधने का कानूनी सबूत तैयार होता है. दूसरा कि पासपोर्ट बनवाने, अपना धर्म, गोत्र आदि बदलने के मामले में यह जरूरी दस्तावेज होता है.
दहेज उत्पीड़नयह सर्वविदित है कि दहेज एक सामाजिक अभिशाप और कानूनी अपराध है. यह महिला प्रताड़ना और उत्पीड़न का बड़ा कारण है. भारतीय दंड संहिता की धारा 304(बी) तथा दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 के तहत दहेज लेना और देना दोनों अपराध है. ऐसे अपराध की सजा कम-से-कम पांच वर्ष कैद या कम-से-कम पंद्रह हजार रुपये जुर्माना है. दहेज की मांग करने पर छह माह की कैद की सजा और दस हजार रुपये तक का जुर्माना किया जाता है. साथ ही, दहेज के नाम पर किसी भी प्रकार के मानसिक, शारीरिक, मौखिक तथा आर्थिक उत्पीड़न को अपराध के दायरे में रखा गया है.
दहेज हत्या से जुड़े कानूनी प्रावधान
दहेज हत्या को लेकर भारतीय दंड संहिता यानी आइपीसी में स्पष्ट प्रावधान है. इसके लिए संहिता की धारा 304(बी), 302, 306 एवं 498-ए है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 304(बी)
भारतीय दंड संहिता की धारा 304(बी) दहेज हत्या के मामलों में सजा के लिए लागू की जाती है. दहेज हत्या का अर्थ है औरत की जलने या किसी शारीरिक चोट के कारण हुई मौत या शादी के सात साल के अंदर किन्हीं संदेहास्पद कारण से हुई उसकी मृत्यु. दहेज हत्या की सजा सात साल कैद है. इस जुर्म के अभियुक्त को जमानत नहीं मिलती है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 302
संहिता की धारा 302 में दहेज हत्या के मामले में सजा का प्रावधान है. इसके तहत किसी औरत की दहेज हत्या के अभियुक्त का अदालत में अपराध सिद्ध होने  पर उसे उम्र कैद या फांसी हो सकती है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 306
अगर ससुराल वाले किसी औरत को दहेज के लिए मानसिक या भावनात्मक रूप से हिंसा का शिकार बनाते हैं और  इस कारण वह आत्महत्या कर लेती है, तो वहां भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत उसे सजा मिलती है. इसके तहत दोष साबित होने पर अभियुक्त को महिला द्वारा आत्महत्या के लिए मजबूर करने के अपराध के लिए जुर्माना और 10 साल तक की सजा सुनायी जा सकती है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए
पति या रिश्तेदारों द्वारा दहेज के लालच में महिला के साथ क्रूरता और हिंसा का व्यवहार करने पर संहिता की धारा-498ए के तहत कठोर दंड का प्रावधान है. यहां क्रूरता के मायने हैं- औरत को आत्महत्या के लिए मजबूर करना, उसकी जिंदगी के लिए खतरा पैदा करना व दहेज के लिए सताना व हिंसा.
विवाह प्रमाण-पत्र कैसे प्राप्त करें
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत विवाह के लिए पक्षों (वर और वधु) को, अपने क्षेत्र के विवाह पंजीयक यानी मैरेज रजिस्ट्रार के पास आवेदन देना होता है. यह पंजीयक उस क्षेत्र का हो सकता है, जहां विवाह संस्कार संपन्न हो रहा है या फिर जिस पंजीयक के अधिकार क्षेत्र में दोनों में से कोई पक्ष विवाह में ठीक पहले लगातार छह माह तक रह रहा हो. दोनों पक्षों को पंजीयक के पास विवाह के एक माह के भीतर अपने माता-पिता या अभिभावकों या अन्य गवाहों के साथ उपस्थित होना होता है. अगर कोई शादी संपन्न हो चुकी है और उस समय उसका पंजीयन नहीं कराया  गया, तो वैसे विवाह के पंजीयन के लिए वैसे दंपति को पांच वर्ष तक माफी की पंजीयक और उसके बाद जिला रजिस्ट्रार द्वारा दी जाती है.
विशेष विवाह
विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीयन के लिए यह जरूरी है कि पंजीयक को विवाह के पंजीयन का आवेदन देने के कम-से-कम 30 दिनों तक कम-से-कम एक पक्ष को उसके क्षेत्रधिकार में रहा होना चाहिए. यदि कोई एक पक्ष दूसरे विवाह अधिकारी के क्षेत्र में रह रहा है, तो नोटिस की प्रति उसके पास भेज दी जाती है. किसी प्रकार की आपत्ति नहीं प्राप्त होने पर सूचना प्रकाशित होने के एक माह के बाद विवाह संपन्न किया जा सकता है. यदि कोई आपत्ति प्राप्त होती है, तो विवाह अधिकारी इसकी जांच करता है. विवाह संपन्न होने के बाद पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) किया जाता है. अगर पहले से शादी हो चुकी है, तो वैसे मामले में 30 दिनों की सार्वजनिक सूचना देने के बाद विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अधीन विवाह का पंजीकरण किया जाता है.

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