Wednesday 5 February 2014

घरेलू महिला हिंसा पर चुप्पी अब और नहीं



मित्रो,
महिलाओं के प्रति हिंसा की घटनाओं पर देश-दुनिया में जितनी चिंता की जा रही है, घटनाओं की संख्या उतनी ही बढ़ रही है. इसकी बड़ी वजह है सामाजिक हस्तक्षेप की कमी. दिल्ली गैंग रेप जैसी बड़ी घटना जब होती है, तब देश भर में लोग सड़कों पर उतर आते हैं. मीडिया से न्यायपालिका तक की सक्रियता बढ़ जाती है. जनसंगठन और राजनीतिक दल भी जनाक्रोश के साथ होते हैं. यह उचित और स्वाभाविक भी है, लेकिन समाज में ऐसी घटनाओं को जन्म देने वाली परिस्थितियों या अपने आसपास हो रही महिला उत्पीड़न की हर रोज की घटनाओं पर हम और हमारा समाज सीधा हस्तक्षेप करने से कतराता है. इसमें घरेलू महिला हिंसा को लेकर स्थिति और भी गंभीर है. सरकार ने इसे लेकर कानून बनाया है और राज्य सरकारों पर इसे प्रभावी रूप से लागू करने की जिम्मेवारी सौंपी है, लेकिन असलियत यह है कि उत्पीड़न की शिकार होने वाली महिलाएं और हमारा समाज इस कानून को लेकर जागरूक नहीं है. सरकार की व्यवस्था भी मुकम्मल नहीं है. हम इस अंक में इस कानून के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कर रहे हैं, ताकि आप इसके बारे में जान सकें और अगर सरकार के स्तर से इसे लागू करने में कमी रह गयी है, तो सूचना का अधिकार का इस्तेमाल कर दबाव बना सकें.
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 में घरेलू हिंसा में ऐसे सभी कार्यो को शामिल किया गया है, जो किसी व्यक्ति द्वारा घर की किसी महिला के स्वास्थ्य, जीवन, अंग, शरीर या मस्तिष्क को किसी भी तरह का नुकसान पहुंचाता है. अधिनियम की धारा-3 में इसका विस्तृत वर्णन है. महिला का शारीरिक, लैंगिक, मौखिक, भावनात्मक या आर्थिक दुरुपयोग भी घरेलू हिंसा है. दहेज या कोई कीमती सामान प्राप्त करने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से महिला का उत्पीड़न, उसकी उपेक्षा या उसका अपमान भी इसी श्रेणी में रखा गया है. ऐसा करने की धमकी देना भी घरेलू हिंसा माना गया है.
शारीरिक दुरुपयोग क्या है
शारीरिक दुरुपयोग का मतलब है ऐसा कार्य या व्यवहार, जो महिला को शारीरिक पीड़ा पहुंचाता है या उसे अपमानित करता है या उसके जीवन, अंग, स्वास्थ्य या विकास को प्रभावित करता है. इसमें महिला पर हमला और उसके साथ बल प्रयोग भी शामिल है.
लैंगिक दुरुपयोग
इसमें ऐसी लैंगिक क्रिया शामिल है, जो महिला की गरिमा, सम्मान और स्वास्थ्य पर खराब असर डालता है.
मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग
इसके तहत ऐसे सभी व्यवहार और कार्य घरेलू हिंसा के दायरे में आते हैं, जो मौखिक रूप में होते हैं. जैसे महिला का अपमान, किसी भी बात को लेकर उपहास, तिरस्कार और गाली-गलौज. संतान या बेटा पैदा नहीं होने को लेकर उलाहना देना, मजाक उड़ाना, उपेक्षा या गाली देना भी घरेलू हिंसा है. महिला को मारने-पीटने या शारीरिक रूप से पीड़ा पहुंचाने की लगातार धमकी दी जाती है और उससे महिला दुखी या परेशान है, तो ऐसी धमकी भी घरेलू हिंसा है.
आर्थिक दुरूपयोग
इसके तहत महिला को पारिवारिक और व्यक्तिगत संपत्ति, उनके उपभोग और उसके बच्चों द्वारा उनके उपभोग का अधिकार सुनिश्चित किया गया है. इसमें तीन तरह की परिस्थितियों की चर्चा है :
पहला : अगर महिला के पास कोई स्त्री धन है या पारिवारिक संपत्ति में उसे कोई हिस्सा मिला है या कानून अथवा परंपरा के मुताबिक उसके अधिकार में कोई व्यक्तिगत या साझा संपत्ति है या परिवार की कोई साझा संपत्ति है, जिसका उसे और उसके बच्चों को उपभोग करने का अधिकार है, तो उससे वंचित नहीं किया जा सकता. ऐसी किसी संपत्ति या उसके उपयोग या उपभोग के अधिकार से उसे वंचित करना घरेलू हिंसा है.
दूसरा : अगर परिवार की किसी भी चल या अचल साझा संपत्ति, वस्तु, शेयर, बांड, डिपॉजिट या इस तरह की कोई अन्य संपत्ति है, जिसमें महिला का हिस्सा बनता है या जिसके उपयोग या उपभोग के लिए वह या उसकी संतान हकदार है, तो उसे इससे मना करना या उसमें बाधा पैदा करना घरेलू हिंसा है.
तीसरा : अगर परिवार में कोई ऐसी सुविधा या संसाधन है, जिसका घरेलू नातेदारी के आधार पर कोई महिला या उसकी संतान उपयोग या उपभोग करने की हकदार है, तो उसमें बाधा पैदा करना या मना करना भी घरेलू हिंसा है.
घरेलू हिंसा का शिकार कौन
अधिनियम में इसकी स्पष्ट परिभाषा दी गयी है. इसमें ‘व्यथित व्यक्ति’ शब्द का प्रयोग किया गया है. इसके मुताबिक कोई महिला, जो आरोपित की घरेलू नातेदारी में है या अतीत में कभी उसकी नातेदारी में थी, अगर यह कहती है कि वह आरोपित व्यक्ति की घरेलू हिंसा की शिकार हुई है, तो वह अधिनियम के तहत संरक्षण पाने की हकदार है. घरेलू हिंसा अधिनियम को समग्र रूप में देखने पर स्पष्ट है कि घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम के दायरे में केवल पीड़ित महिला ही नहीं, संपत्ति और आर्थिक मामलों में उसका 18 साल से कम का बेटा भी आता है. वह अपना बेटा भी हो सकता है और सौतेला या दत्तक भी. महिला के आर्थिक अधिकार में ऐसे बालक का भी अधिकार निहित है. अगर उसे ऐसी संपत्ति या सुविधा के इस्तेमाल से रोका या मना किया जाता है, उसे वह उस बालक की माता के प्रति घरेलू हिंसा माना जायेगा.
कौन करेगा शिकायत
घरेलू हिंसा की शिकायत खुद पीड़ित महिला, संरक्षण पदाधिकारी या महिला की ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मजिस्ट्रेट से कर सकती है. यानी यह जरूरी नहीं है कि पीड़ित महिला की ही शिकायत पर मजिस्ट्रेट कार्रवाई शुरू करे.
अधिनियम की अन्य बातें
आदेश की अवहेलना अजमानतीय अपराध
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा-31 में यह प्रावधान है कि यदि प्रतिपक्षी मजिस्ट्रेट द्वारा जारी संरक्षण आदेश या किसी अंतरिम आदेश को भंग करता है, तो एक साल के साधारण या सश्रम कारावास तथा बीस हजार रुपये के जुर्माने के दंड का भागी होगी. धारा-32 कहता है कि ऐसा अपराध सं™ोय और अजमानतीय होगा.
संरक्षण पदाधिकारी भी दंड का भागी
संरक्षण पदाधिकारी को भी इस अधिनियम में दंड की सीमा में लाया गया है. संरक्षण पदाधिकारी मजिस्ट्रेट के नियंत्रण और निगरानी में काम करेगा. अगर वह बिना किसी कारण के मजिस्ट्रेट के किसी निर्देश के पालन में चूक करता है या उसे मानने से इनकार करता है, तो वह एक वर्ष तक के साधारण या सश्रम कारावास और बीस हजार रुपये तक के जुर्माने के दंड का भागी होगा.
कार्रवाई के लिए सरकार की अनुमति जरूरीसंरक्षण पदाधिकारी द्वारा मजिस्ट्रेट के किसी निर्देश के पालन में चूक या इनकार के मामले में उसके खिलाफ कोई अभियोजन या कार्रवाई तभी शुरू की जाएगी, जब राज्य सरकार या इसके लिए प्राधिकृत अधिकारी की स्वीकृति मिल जाती है.
वयस्क व्यक्ति की हो सकता है आरोपी
घरेलू हिंसा का आरोपी केवल पुरुष हो सकता है, जिसकी उम्र 18 साल से अधिक हो और जो पीड़ित महिला की घरेलू नातेदारी में हो या कभी रहा हो. 18 साल से कम उम्र के किसी व्यक्ति को इसका आरोपी नहीं बनाया जा सकता.
घरेलू नातेदारी में साझा परिवार
घरेलू नातेदारी में दो व्यक्तियों के बीच ऐसी नातेदारी है, जो एक  साथ रहने या साझा परिवार का सदस्य होने के नाते बनती है. यह व्यक्ति साझा परिवार का वर्तमान या पूर्व सदस्य हो सकता है.

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