मित्रो,
लंबे इंतजार के बाद कृषि सहकारी साख को सशक्त करने की दिशा में ठोस पहल हुई है. अब पंचायत स्तर पर लैंपस और पैक्स गठित किये गये हैं. सहकारी साख के मामले में यह बड़ा कदम है. अब तक किसान इसलिए भी लैम्पस और पैक्स का लाभ नहीं ले पा रहे थे कि उन तक उनकी आसान पहुंच नहीं थी. लैंपस-पैक्स दूर-दूर थे. सक्रिय भी नहीं थे. प्रो ए बैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू कर इस अड़चन को दूर कर दिया गया है. किसानों को खेती के लिए आसान शर्तो पर कर्ज देने, उन्हें सरकारी दर पर खाद, बीज और कीटनाशक उपलब्ध कराने तथा सरकारी दर पर धान-गेहूं की सीधी खरीद करने जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी वाली यह संस्था अब आपके ज्यादा करीब है. आप इसके सदस्य बन सकते हैं और इसकी हर गतिविधि में सक्रियता से भाग ले सकते हैं. इसके अध्यक्ष और कार्यकारिणी सदस्य की अहमियत मुखिया और वार्ड सदस्य से कम नहीं है. इसलिए इनके निर्वाचन को भी पंचायत चुनाव की तरह गंभीरता से लेना चाहिए. अभी धान की खरीद होनी है. रबी की खेती के लिए किसानों को कर्ज दिया जाना है. आप उनका लाभ लें. यह आपका अधिकार है. इसमें अड़चन आने पर आप आरटीआइ का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
कृषि सहकारी साख को लेकर बिहार और झारखंड में थोड़ा अंतर है. वहां की सभी पंचायतों में पैक्स हैं. झारखंड जनजातीय बहुल इलाका है. यहां कृषि सहकारी साख संरचना दो तरह की है. एक वृहदाकार बहुउद्देश्यीय सहकारी सोसाइटी यानी लैंपस और दूसरी प्राथमिक कृषि सहकारी सोसाइटी यानी पैक्स. लैंपस अनुसूचित क्षेत्रों में हैं, जबकि पैक्स गैर अनुसूचित क्षेत्रों में. राज्य की सभी 4423 पंचायतों में लैंपस-पैक्स का गठन कर लिया गया है. प्रो ए बैद्यनाथन कमेटी की सिफारिश के आधार पर राज्य में 31 मार्च तक सभी पुराने लैंपस और पैक्सों का विखंडन कर दिया गया है. पहले पांच-छह पंचायतों पर एक लैंपस या पैक्स की व्यवस्था थी. अब सभी पंचायतों में लैंपस और पैक्स का गठन कर लिया गया है. लैंपस और पैक्स में बुनियादी फर्क यह है कि लैंपस के 11 में से 6 सदस्य हर हाल में जनजातीय समुदाय के होंगे और अध्यक्ष भी उसी समुदाय का होगा, जबकि पैक्स में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है. वहां कार्यकारिणी या प्रबंधकारिणी के अध्यक्ष और सदस्य पद के लिए किसी भी समूह या जाति का व्यक्ति निर्वाचित हो सकता है.
अब पंचायत स्तर पर लैंपस-पैक्स
बैद्यनाथन कमेटी की सिफारिश के आधार पर अब राज्य की सभी पंचायतों में लैंपस या पैक्स का गठन किया गया है. पहलेस्थिति इससे भिन्न थी. पहले कई पंचायतों को मिला कर एक लैंपस या पैक्स की व्यवस्था थी. इससे किसानों को लाभ लेने मेंपरेशानी हो रही थी. गांवों की आबादी के साथ परिवारों की संख्या भी बढ़ी है. सरकार ने किसानों के लिए योजनाओं की संख्या मेंभी वृद्धि की है. जैसे-जैसे कृषि की नयी चुनौतियां बढ़ रही हैं या पुरानी समस्याएं जटिल हो रही हैं, वैसे-वैसे केंद्र और राज्यसरकार भी किसानों की सभी तरह की मदद के लिए नयी-नयी योजनाएं शुरू कर रही हैं.
बैद्यनाथन कमेटी की सिफारिश के आधार पर अब राज्य की सभी पंचायतों में लैंपस या पैक्स का गठन किया गया है. पहलेस्थिति इससे भिन्न थी. पहले कई पंचायतों को मिला कर एक लैंपस या पैक्स की व्यवस्था थी. इससे किसानों को लाभ लेने मेंपरेशानी हो रही थी. गांवों की आबादी के साथ परिवारों की संख्या भी बढ़ी है. सरकार ने किसानों के लिए योजनाओं की संख्या मेंभी वृद्धि की है. जैसे-जैसे कृषि की नयी चुनौतियां बढ़ रही हैं या पुरानी समस्याएं जटिल हो रही हैं, वैसे-वैसे केंद्र और राज्यसरकार भी किसानों की सभी तरह की मदद के लिए नयी-नयी योजनाएं शुरू कर रही हैं.
इन योजनाओं का लाभ किसानों तक पहुंचाने के लिए एजेंसियों को भी उनके ज्यादा करीब लाना जरूरी हो गया था. ए बैद्यनाथन कमेटी ने इस पर खास तौर पर जोर दिया था. दूसरी ओर पंचायतों का भी गठन हो चुका है और पहले के मुकाबले वे ज्यादा सशक्त हैं. इसलिए पंचायत सरकारों की तरह पंचायतों में ही लैंपस या पैक्स का स्थापना जरूरी हो गयी थी. इसलिए इस साल मार्च तक निश्चित कार्य योजना तैयार कर सरकार सहकारिता विभाग के माध्यम से पुराने लैंपस और पैक्स को विघटित कर उनके स्थान पर पंचायत स्तर पर लैंपस या पैक्स का गठन किया है. यह कार्य पुराने लैंपस या पैक्स के माध्यम से ही पूरा कराया गया. यह सहकारिता और प्राथमिक कृषक साख के क्षेत्र में बड़ा बदलाव है.
इसलिए यह उम्मीद की जा रही है कि पहले के मुकाबले इस बार लोग लैंपस या पैक्स का ज्यादा लाभ ले सकेंगे. दूसरी ओर लैंपस या पैक्स से मिलने वाली सुविधाओं के मामले में भी सरकार ने नयी नीति बनायी है. तीसरी बात कि लैंपस या पैक्स से कर्ज लेने की प्रक्रिया को पहले से ज्यादा सरल और बहुत हद तक पारदर्शी बनाने की कोशिश की गयी है. अब इसे लागू करना लैंपस या पैक्स के अध्यक्ष और सदस्यों की प्रतिबद्धता, निष्पक्षता, विश्वसनीयता और दक्षता पर निर्भर करता है. अगर यह सही-सही कार्यान्वित हो जाता है, तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बदलने में बड़ी मदद मिल सकती है. इसका असर देश के सकल घरेलू उत्पाद पर भी सकारात्मक पड़ेगा. चौथी बात कि किसान पहले के मुकाबले ज्यादा जागरूक हुए हैं. उनमें शिक्षा और साक्षरता की दर बढ़ी है. वे सरकार की योजनाओं के बारे में भी पहले के मुकाबले ज्यादा जानकारी रखने लगे हैं और उनका लाभ लेने के प्रति उनमें प्रतिस्पर्धा बढ़ी है. कर्ज अदायगी की प्रवृत्ति में भी सुधार हुआ है. कर्ज अदायगी की क्षमता बढ़ी है. इसमें सरकार की दूसरी योजनाओं की बड़ी भूमिका है.
लैंपस-पैक्स से किसानों को कई लाभ
लैम्पस एवं पैक्स किसानों को दो प्रकार की सेवा देती हैं. एक अनुदान व ऋण सेवा और दूसरी धान-गेहूं की खरीद की सेवा. कृषिऋण दो तरह के हैं. एक अल्पकालीन एवं दूसरा दीर्घकालिक. किसान अपनी जरूरत और क्षमता के मुताबिक लैंपस और पैक्सकी इस सेवा का लाभ ले सकते हैं. इसके अलावा किसानों को अनुदानित दर पर उन्नत किस्म बीज, खाद और कीटनाशक भीयहां से मिलना है. जब किसान की फसल तैयार हो जाती है, तो उसे बाजार उपलब्ध कराने और सरकार द्वारा निर्धारित समर्थनमूल्य दिलाने का काम भी इन्हें करना है. लैंपस और पैक्स को खरीफ के मौसम में धान और रबी के मौसम में गेहूं की खरीदकरनी है.
लैम्पस एवं पैक्स किसानों को दो प्रकार की सेवा देती हैं. एक अनुदान व ऋण सेवा और दूसरी धान-गेहूं की खरीद की सेवा. कृषिऋण दो तरह के हैं. एक अल्पकालीन एवं दूसरा दीर्घकालिक. किसान अपनी जरूरत और क्षमता के मुताबिक लैंपस और पैक्सकी इस सेवा का लाभ ले सकते हैं. इसके अलावा किसानों को अनुदानित दर पर उन्नत किस्म बीज, खाद और कीटनाशक भीयहां से मिलना है. जब किसान की फसल तैयार हो जाती है, तो उसे बाजार उपलब्ध कराने और सरकार द्वारा निर्धारित समर्थनमूल्य दिलाने का काम भी इन्हें करना है. लैंपस और पैक्स को खरीफ के मौसम में धान और रबी के मौसम में गेहूं की खरीदकरनी है.
सरकार की भूमिकाराज्य सरकार की यह जिम्मेवारी है कि वह लैंपस और पैक्स को मजबूती प्रदान करे. प्रो बैद्यनाथन कमेटी की सिफारिश केमुताबिक सरकार को उनका वित्त पोषण करना है और आधारभूत सुविधाएं मुहैया करानी है. इसके तहत उन्हें पैकेज दिया जाना हैऔर भवन आदि का निर्माण कराया जाना है. झारखंड में अभी यह काम नहीं हुआ है. लैंपस व पैक्स का वित्त पोषण एवं उनकेलिए आधारभूत संसाधन तैयार करने का काम अभी होना है.
सहकारिता का ढांचा
राज्य स्तर पर : राज्य सहकारी बैंक
जिला स्तर पर : केंद्रीय सहकारी बैंक लिमिटेड
पंचायत स्तर पर :
(क) गैर अनुसूचित क्षेत्र : प्राथमिक कृषि साख सहयोग समिति (पैक्स)
(ख) अनुसूचित क्षेत्र : वृहदाकार बहुउद्देश्यीय सहकारी सोसाइटी (लैंपस)
कृषि व लैंपस-पैक्स
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक देश की 68.8 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या जीविका के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है.
देश के घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान 14.5} है.
यह औसत से कम है. इस दर में गिरावट जारी है.
राष्ट्रीय विकास दर के लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह जरूरी है कि देश की अर्थव्यवस्था में कृषि के समग्र योगदान को बढ़ाया जाये.
इसे वृहदाकार बहुउद्देश्यीय सहकारी सोसाइटी यानी लैंपस और प्राथमिक कृषि सहकारी सोसाइटी यानी पैक्स के जरिये पूरा किया जाना है.
सहकारिता कानून
बिहार सहकारी समितियां 1935 अधिनियम
बिहार सहकारी समितियां 1935 अधिनियम (संशोधित)
बिहार सहकारी स्वावलंबी सोसायटी अधिनियम, 1996
बिहार सहकारी समितियां नियम, 1959
झारखंड सहकारी समितियां (संशोधन) नियम, 2008
लैंपस-पैक्स की जवाबदेही
बैंकिंग सेवा
कृषि उत्पाद (धान-गेहूं) की खरीद
फसलों की बीमा
राष्ट्रीय कृषि बीमा
समेकित सहकारी विकास
राष्ट्रीय कृषि विकास
अल्पकालीन कृषि ऋण
दीर्घकालीन कृषि ऋण
किसानों को अनुदानित दर पर खाद, बीज और कीटनाशक की आपूर्ति
आरटीआइ लगाएं
सहकारिता और कृषि सहकारी साख से जुड़े मामलों को उजागर करने तथा अपने हिस्सा का लाभ हासिल करने के लिए आप सूचना का अधिकार का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. आप आरटीआइ एक्ट के तहत ऐसी सूचना मांग सकते हैं.
यहां से मांगें सूचना
प्रखंड स्तर : प्रखंड सहकारिता प्रसार पदाधिकारी
जिला स्तर : जिला सहकारिता पदाधिकारी
No comments:
Post a Comment