Friday 31 January 2014

मनरेगा पर ज्यादा सरकारी धन खर्च


मनरेगा देश की सबसे बड़ी योजना है, जिस पर केंद्र सरकार 40-42 हजार करोड़ रुपये सालाना खर्च करती है. इसके मकसद के बारे में सभी जानते हैं. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) एक कानून है, जो शासन को इस बात के लिए बाध्य करता है कि वह किसी भी ग्रामीण परिवार के वैसे सदस्यों को एक साल में सौ दिन का रोजगार मुहैया कराये, जो 18 साल की उम्र पूरी कर चुके हैं और अकुशल मजदूर के रूप में काम करना चाहते हैं.

25 अगस्त 2005 को नरेगा कानून देश में लागू हुआ और तब से अब तक इसका पूरा-पूरा लाभ लोगों तक पहुंचाने के लिए सरकार की चुनौतियां कम नहीं हुई हैं. इसकी बड़ी वजह है कि इसमें सीधे तौर पर पैसे का हस्तांतरण होता है. मजदूर में जागरूकता, साक्षरता, एकजुटता और प्रतिरोध की क्षमता का अभाव है. राजस्थान को छोड़ दें, तो करीब-करीब सभी राज्यों में भुगतान को लेकर मजदूरों की स्थिति एक जैसी है. दूसरा कि जो तंत्र राज्य से ग्राम पंचायत स्तर तक इस मनरेगा के कार्यान्वयन में लगा है, वह भ्रष्ट है. इस भ्रष्ट तंत्र के आगे मनरेगा की कानूनी सख्ती भी कमजोर पड़ जाती है. इसलिए अब तक मनरेगा की योजनाओं के चयन, उनके कार्यान्वयन और मजदूरों के भुगतान को लेकर जितनी भी तकनीक विकसित किये गये, सब में दोष पैदा होता गया. नतीजा है कि ज्यादातर राज्यों में मजदूरों ने यह मान लिया कि मनरेगा उनके हित के लिए नहीं है और वे परंपरागत मजदूरी-पेशे तक खुद को सीमित कर लेना ज्यादा मुनासिब समझ रहे हैं. इस ने मजदूर पलायन में कमी नहीं आने दी.
चार साल बाद बदला नाम
मनरेगा शुरू में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी नरेगा कहा गया था. दो अक्तूबर 2009 को महात्मा गांधी की जयंती पर इसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा नाम दिया गया.
2008 में पूरे देश में हुई लागू
मनरेगा (तब नरेगा) योजना दो फरवरी, 2006 को देश के 200 जिलों में शुरू की गयी थी. अगले साल इसे और 130 जिलों में विस्तारित किया गया. वर्ष 2008-09 में पहली अप्रैल से यह देश के सभी 593 जिलों में लागू की गयी. इसी अनुपात में मनरेगा का खर्च भी बढ़ा.
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
यह कानून है. इसका पालन शासन और उसके तंत्र को करना है. इसलिए इसकी सफलता और विफलता का श्रेय उन्हीं पर है. यह अधिनियम राज्य सरकारों को मनरेगा को लागू करने के निर्देश देता है. मनरेगा के तहत केंद्र सरकार मजदूरी की लागत, माल की लागत का 3/4 और प्रशासनिक लागत का कुछ प्रतिशत वहन करती है. राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ता, माल की लागत का 1/4 और राज्य परिषद की प्रशासनिक लागत को वहन करती है. चूंकि बेरोजगारी भत्ता राज्य सरकार को देना है और यह सरकार के तंत्र द्वारा मजदूर को मांगने पर काम देने में विफल रहने पर दिया जाना है, तो यह उम्मीद की गयी कि राज्य सरकारें और उनका तंत्र इसे लेकर ज्यादा संवेदनशील होंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. तंत्र ने तमाम प्रावधानों और व्यवस्था के बाद भी बेरोजगारी भत्ते के भुगतान के मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया.
बेरोजगारी भत्ते की राशि राज्य सरकार का विषय
बेरोजगारी भत्ते की राशि को निश्चित करना राज्य सरकार पर निर्भर है, जो इस शर्त के अधीन है कि यह पहले 30 दिनों के लिए न्यूनतम मजदूरी के 1/4 भाग से कम ना हो और उसके बाद न्यूनतम मजदूरी का 1/2 से कम ना हो. प्रति परिवार 100 दिनों का रोजगार (या बेरोजगारी भत्ता) सक्षम और इच्छुक श्रमिकों को हर वित्तीय वर्ष में प्रदान किया जाना है.
किसे देना है आवेदन
ग्रामीण परिवारों के वयस्क सदस्य ग्राम पंचायत के पास एक तस्वीर के साथ अपना नाम, उम्र और पता जमा करते हैं. जांच के बाद पंचायत, घरों को पंजीकृत करती है और एक जॉब कार्ड प्रदान करती है. जॉब कार्ड में, पंजीकृत वयस्क सदस्य का ब्यौरा और उसका फोटो शामिल होता है. एक पंजीकृत व्यक्ति या तो पंचायत या कार्यक्र म अधिकारी को लिखित रूप से (निरंतर काम के कम से कम चौदह दिनों के लिए) काम करने के लिए एक आवेदन प्रस्तुत कर सकता है. आवेदन पर काम नहीं मिले, तो दैनिक बेरोजगारी भत्ता आवेदक पाने का अधिकारी है. इस अधिनियम के तहत पुरु षों और महिलाओं के बीच किसी भेदभाव की अनुमति नहीं है. इसलिए पुरु षों और महिलाओं को समान दर पर मजदूरी का भुगतान किया जाना है.
लक्ष्य से पीछे रही योजना
मनरेगा की योजनाओं के कार्यान्वयन में कई खामियां रही हैं, जिन्हें दूर करने की पहल अब भी जारी है. इस योजना के विशेषज्ञ और आलोचक इन कमियों की चर्चा तो करते ही रहे हैं, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने भी इसे स्वीकार किया. इन कमियों का ही नतीजा रहा कि मनरेगा में जॉब कार्डधारियों को रोजगार देने का राष्ट्रीय औसत केवल 48 कार्य दिवस रिकॉर्ड किया गया.
पैसे ही नहीं, संसाधन भी असुरक्षित
मनरेगा की समीक्षा में राष्ट्रीय स्तर पर जो तथ्य सामने आये हैं, उनमें यह बात उभरी है कि मनरेगा के पैसों की बंदरबांट तो हो ही रही है, इस योजना से तैयार होने वाले ग्रामीण विकास के आधारभूत संसाधन और संरचना भी असुरक्षित हैं. चाहे तालाब हो या सिंचाई कूप, गांव-पंचायत के दबंग किस्म के लोग उनका अतिक्रमण और निजी हित में इस्तेमाल करने में पीछे नहीं हैं. इसलिए सामाजिक सरोकार रखने वाले लोग ऐसी संरचना की सूची बना कर उनकी निगरानी कर सकते हैं. इसमें सूचनाधिकार का भी प्रयोग कर सकते हैं. पंचायत सरकारें अगर ऐसे मामलों की अनदेखी करने पर झझकोरा जा सकता है.
मनरेगा में राजस्थान ज्यादा सफल
राजस्थान में मनरेगा की योजनाएं अन्य राज्यों के मुकाबले सफल रहीं. इसकी  एक मात्र वजह रही कि वहां के जनसंगठन और लाभुक ज्यादा जागरूक हैं. उन्होंने नागरिक अधिकारों के लिए कई लंबे-लंबे आंदोलन किये. सूचना का अधिकार अधिनियम आने के पहले उन्होंने इस अधिकार की ताकत को जाना और उसका इस्तेमाल किया. पंचायतों में हुए एक-एक पैसे का खर्च उन्होंने गांधीवादी आंदोलन के जरिये सार्वजनिक कराया और उस पर जन सुनवाई की. भ्रष्टाचार को उजागर किया और अपने हक को हासिल करने की गांव-पंचायत स्तर पर मुहिम छेड़ी. जब मनरेगा की बारी आयी, तो उनकी इस जागरूकता ने उस पर भी प्रभाव छोड़ा. इस जागरूकता, जन सुनवाई और एकजुटता की मांग बिहार-झारखंड में भी है.
एकीकृत बाल विकास योजना
समन्वित बाल विकास योजना या एकीकृत बाल विकास योजना का संक्षिप्त नाम आइसीडीएस है. इसके तहत छह वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं को स्वास्थ्य, पोषण एवं शैक्षणकि सेवाओं का पैकेज प्रदान करने की योजना है. यह योजना  महिला और बाल विकास मंत्रलय के अंतर्गत 1975  में शुरू की गयी थी. हाल में केंद्र सरकार द्वारा योजना को प्रभावपूर्ण ढंग से क्रि यान्वित कराने के लिए कुछ नये कदम उठाये गये हैं. इसके अंतर्गत 11-18 वर्ष के किशोर आयु वर्ग की बालिकाओं के लिए सेवाओं, गैर सरकारी संगठनों की प्रभावशाली भागीदारी और निगरानी को सुदृढ़ बनाया गया है. इस योजना के तहत सभी उपलब्ध सेवायें, प्रत्येक छह वर्ष के नीचे के बच्चों को गुणवत्ता के साथ सुनिश्चित कराना सरकार का संकल्प है. पिछले वित्त वर्ष में सरकार ने इस योजना के  लिए 15850 करोड़ रु पये आवंटित किये थे.
स्वयंसिद्धा
इस योजना को वर्ष 2000-01 में इस उद्देश्य के साथ शुरू किया गया था कि महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और कानूनी सशक्तीकरण के लिए चलने वाली सभी योजनाओं को समन्वित रूप में संचालित किया जाये. यह केंद्र सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रलय द्वारा शुरू की गयी थी. इसे पूरे आठ साल तक चलाया गया. इसके तहत महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को छोटी बचतों के लिए प्रोत्साहित किया गया. इस योजना का मकसद महिलाओं का वित्तीय समावेशन था. योजना सौ फीसदी केंद्र प्रायोजित थी. इसके तहत 70 हजार से अधिक महिला समूहों के बैंक खाते खोले गये. यह योजना 31 मार्च 2008 को समाप्त कर दी गयी है.
‘स्वाधार’ योजना
‘स्वाधार’ में दो शब्द हैं ‘स्व’ व ‘आधार’ यानी लाभुक को ऐसी मदद, जिससे वह अपने जीने-खाने का स्वयं का आधार प्राप्त कर सके. यह पूर्ण रूप से केंद्र प्रायोजित योजना है. केंद्र सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रलय द्वारा इसे 2001-02 में शुरू किया गया. यह वैसी महिलाओं के लिए है, जो  कठिन परिस्थितियों में रह रही हैं. इस योजना के अंतर्गत वेश्यावृत्ति, रिहा कैदी, प्राकृतिक आपदा अथवा अन्य किसी भी कारण से बेघर और बेसहारा पीड़ित महिलाओं को स्वाधार गृह लाया जाता है, जहां उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें. यह परियोजना समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास विभागों, महिला विकास निगमों, शहरी निकायों के निजी, सार्वजनिक ट्रस्टों या स्वैच्छिक संगठनों आदि के माध्यम से कार्यान्वित की जाती है. पूर्वशर्त यह है कि उन्हें अलग-अलग परियोजनाओं के आधार पर इस तरह की महिलाओं के पुनर्वास का वांछित अनुभव और कौशल हो.

Thursday 30 January 2014

हर क्षेत्र में केंद्र सरकार की योजनाएं



मित्रों,
केंद्र सरकार करीब 35 योजनाएं चला रही है. ज्यादातर योजनाओं में केंद्र सरकार की 75 से 100 फीसदी वित्तीय हिस्सेदारी है. यानी योजना पर इतनी राशि केंद्र सरकार खर्च करती है. जिन योजनाओं में केंद्र का सौ फीसदी खर्च नहीं है, वहां शेष राशि राज्य सरकार लगाती है. इसका स्पष्ट फॉमरूला है -स्पष्ट नीति . इसे केंद्र और राज्य सरकार की सहमति मिली हुई है.

योजना केंद्र सरकार की हो या राज्य सरकार की, उनका कार्यान्वयन राज्य सरकारों को अपनी मशीनरी के जरिये  कराना है. इनमें से कई योजनाओं के कार्यान्वयन में निजी क्षेत्र को भागीदार बनाये जाने का प्रावधान है और इसकी मदद राज्य सरकार ले भी रही है. इन सभी योजनाओं का लाभ राज्य की जनता को मिलना है. ऐसी योजनाएं, जो केवल शहरी क्षेत्र के लिए हैं, को छोड़ कर बाकी सभी योजनाओं का लाभुक वर्ग हमारी गांव-पंचायतों का है.

उन्हें इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि केंद्र सरकार उनके लिए किस-किस तरह की योजनाएं चला रही है? उन योजनाओं की पृष्ठभूमि और लक्ष्य क्या है? इस कल्याणकारी लोकतांत्रिक देश में मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण, महत्वाकांक्षी और सशक्त योजना भी है, जिस पर सकल घरेलू उत्पादन का करीब 5} धन खर्च होता है. आखिर ऐसी योजनाओं का पूरा-पूरा लाभ लोगों को क्यों नहीं मिल पाता? ऐसे सवालों का जवाब तलाशने के लिए विशेषज्ञों की समीक्षा और अध्ययन रिपोर्ट के अलावा सबसे ठोस आधार है उन तथ्यों और आंकड़ों की वास्तविकता को ग्रास रूट पर जानना, जिसे सरकारी तंत्र अपने हिसाब से देश के सामने रखता है. इसके लिए उन योजनाओं के बारे में जानकारी जरूरी है, ताकि तथ्यों और आंकड़ों की वास्तविकता का पता लगाने के लिए आरटीआइ (सूचना का अधिकार) का भी इस्तेमाल किया जा सके. हम इस अंक में केंद्र सरकार की वैसी योजनाओं की चर्चा कर रहे हैं.
आरके नीरद
इंदिरा आवास योजना
इंदिरा आवास योजना केंद्र प्रायोजित आवास निर्माण योजना है. इस योजना में 75 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार और 25 राशि राज्य सरकार देती है. उत्तर-पूर्व के राज्यों के लिए केंद्र-राज्य वित्त अनुपात 90:10 है. यानी वहां 90 प्रतिशत राशि केंद्र देती है और राज्य सरकार को केवल 10 प्रतिशत राशि लगानी होती है. संघ शासित प्रदेशों के लिए यह योजना 100} केंद्र प्रायोजित है. यानी पूरी राशि केंद्र सरकार देती है. 1985-86 से चल रही इस योजना का पुनर्गठन 1999-2000 में किया गया था, जिसके अंतर्गत गांवों में गरीबों के लिए मुफ्त में मकानों का निर्माण किया जाता है. वर्तमान में ग्रामीण परिवारों को मकान निर्माण के लिए  45 हजार की धनराशि दी जाती है.     
संकटग्रस्त क्षेत्रों में यह राशि 45.5 हजार नियत की गयी है.  योजना केवल गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले (बीपीएल) परिवारों के लिए है. भारत निर्माण के अंतर्गत चल रही इंदिरा आवास योजना पर हर साल करीब 12-13 हजार करोड़ रुपये खर्च होते हैं. इस योजना का मकसद हर बेघर और गरीब परिवार को अपना घर उपलब्ध कराना है. केंद्र सरकार की यह योजना जितनी लोकप्रिय है, इसके कार्यान्वयन में अनियमितता और गड़बड़ियों की उतनी ही शिकायतें भी हैं.
जननी सुरक्षा योजना
जननी सुरक्षा योजना सुरक्षित प्रसव से जुड़ी योजना है. इसके तहत संपर्क कार्यकर्ता द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा अधिकारी की देखरेख में प्रसव की व्यवस्था करना आवश्यक है. इससे गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य जांच और प्रसव के बाद देखभाल और निगरानी करने में सहायता मिलती है.
मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता
मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं और किशोरियों के स्वास्थ्य के लिए काम करती हैं. इसे संक्षेप में आशा नाम दिया गया है. ‘आशा’ एक्रिडिएटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) का संक्षिप्त रूप है. यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रलय द्वारा प्रायोजित जननी सुरक्षा योजना से जुड़ी ग्रामीण स्तर की महिला कार्यकर्ता है. इसका काम स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र के जरिये गरीब महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं उपलब्ध कराना है. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन यानी एनआरएचएम योजना आशा के माध्यम से ही चलायी जा रही है. यह योजना 2005 में शुरू की गयी. इस योजना का लक्ष्य 2012 तक पूरी तरह क्रि यान्वित किया जाना था. देश के प्रत्येक गांव में एक आशा की नियुक्ति जरूर सरकार ने महसूस की है. जनवरी 2013 के आंकड़ों के अनुसार भारत में आशा कर्मियों की कुल संख्या 863506 है. इसे सेवा के बदले मानदेय और प्रोत्साहन राशि का प्रावधान है.
राजीव गांधी किशोरी सशक्तीकरण योजना
राजीव गांधी किशोरी सशक्तीकरण योजना, जिसे सबला भी कहा जाता है, केंद्र सरकार द्बारा वर्ष 2010 में 11 से 18 वर्ष की किशोरियों के  के लिए शुरू की गयी.  शुरू में यह देश के 200 पिछड़े जिलों में लागू की गयी थी. यही योजना महिला और बाल  विकास मंत्रलय (भारत) के सौजन्य से 1 अप्रैल 2011 से सबला नाम से पूरे देश में लागू की गयी. इस योजना का सारा खर्च केंद्र सरकार वहन करती है.  इसके अंतर्गत 11 से 18 साल तक की किशोरियों में पोषण, प्रशिक्षण एवं जागरु कता को बढ़ावा दिया जाता है. किशोरियों को आयरन और प्रोटीन की गोलियां एवं अन्य आवश्यक पोषक तत्व दिये जाते हैं. योजना के तहत 11 से 14 साल की बच्चियों के लिए मध्याह्न् भोजन योजना द्वारा एवं 15 से 18 साल की किशोरियों के लिए आंगनबाड़ी केंद्र द्वारा लाभ दिया जाता है.
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन यानी एनआरएचएम देश के  ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के लिए है. इसका लक्ष्य स्वस्थ भारत का निर्माण करना है. यह योजना 12 अप्रैल 2005 को शुरू की गयी. यह कार्यक्र म स्वास्थ्य मंत्रलय द्वारा चलाया जा रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुरक्षा में केंद्र सरकार की यह एक प्रमुख योजना है.  यह ग्रामीण क्षेत्रों में सुगमता से उपलब्ध होने वाली, जवाबदेह और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवायें मुहैया कराने के लिए चलायी जा रही है. इसके तहत विभिन्न स्तरों पर चल रही लोक स्वास्थ्य की सेवाओं को एक स्थान पर उपलब्ध कराने की व्यवस्था सुनिश्चित करना है. जैसे, प्रजनन बाल स्वास्थ्य परियोजना, एकीकृत रोग निगरानी, मलेरिया, कालाजार, तपेदिक तथा कुष्ठ आदि. इसमें शिशु मृत्युदर में कम करने के उपाय शामिल हैं. इस योजना के क्रि यान्वयन में लगीं प्रशिक्षित आशा की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है. लगभग प्रति 1000 ग्रामीण जनसंख्या पर एक आशा कार्यरत है. पिछले वित्त वर्ष में केंद्र सरकार ने इस योजना के लिए 18114 करोड़ रुपये आवंठित किये थे.    
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन
देश में साक्षरता की दर बढ़ाने और सभी वर्ग में अक्षर ज्ञान के प्रसार के लिए पांच मई 1988 में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना की गयी थी. तब इसका उद्देश्य 2007 तक 15 से 35 आयु वर्ग के महिला और पुरुषों को  व्यावहारिक साक्षरता प्रदान करना और साक्षरता की दर को 75 प्रतिशत तक पहुंचाना था. 2009 में इसकी संरचना में बदलाव के साथ इसे फिर से लागू किया गया. अभी यह योजना बिहार-झारखंड सहित अन्य जिलों में चल रही है, जिस पर हम कुछ अंक पहले विस्तार से चर्चा कर चुके हैं.
बालबंधु योजना
केंद्र सरकार ने आतंकवाद, अलगाववाद तथा नक्सलवाद से प्रभावित बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास की सुविधा देने के लिए यह कार्यक्रम शुरू किया गया है. इस योजना पर खर्च होने वाली पूरी राशि प्रधानमंत्री राहत कोष से दी जाती है.
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण वर्ष 2009 में गठित किया गया था. यह भारत सरकार का प्राधिकरण है. इसे विशिष्ट पहचान पत्र के निर्माण से संबंधित सभी पहलुओं पर काम करना है. इसके पहले अध्यक्ष नंदन निलेकणी हैं. इस प्राधिकरण को एक डाटाबेस तैयार करना है और देश के प्रत्येक नागरिक को एक विशिष्ट पहचान संख्या आवंटित करनी है. इस नंबर के आधार पर उस नागरिक की पूरी जानकारी सरकार के पास  होगी.
वाल्मीकि आंबेडकर मलिन बस्ती आवास योजना
वाल्मीकि अम्बेडकर मलिन बस्ती आवास योजना का संक्षिप्त नाम  वाम्बे है. इस योजना शुरु आत दिसंबर 2001 में की गयी थी. यह योजना मलिन बस्तियों में रहने वालों के लिए है. इसके तहत उनके लिए घरों के निर्माण और उनका उन्नयन को सरल बनाया जाता है. वाम्बे का एक घटक कार्यक्रम निर्मल भारत अभियान के तहत संचालित है, जिसमें सामुदायिक शौचालयों का निर्माण कराया जाना है. इस योजना के कार्यान्वयन में केंद्र सरकार 50 प्रतिशत सिब्सडी देती है. शेष 50 प्रतिशत की व्यवस्था राज्य सरकार करती है.

Wednesday 29 January 2014

Life of Mahatma Gandhi




Mahatma Gandhi was born as Mohandas Karamchand Gandhi on October 2, 1869 at Porbandar, located in the present day state of Gujarat. His father Karamchand Gandhi was the Diwan (Prime Minister) of Porbandar. Gandhi's mother Putlibai was a pious lady and under her tutelage Gandhi imbibed various principles of Hinduism at an early age.

In 1883, all of 13 and still in high school, Gandhi was married to Kasturbai as per the prevailing Hindu customs. For a person of such extraordinary visionary zeal and resilience, Mahatma Gandhi was by and large an average student in school and was of a shy disposition. After completing his college education, at his family's insistence Gandhi left for England on September 4, 1888 to study law at University College, London. During his tenure in London, Mohandas Gandhi strictly observed abstinence from meat and alcohol as per his mother's wishes.

Upon completion of his law degree in 1891, Gandhi returned to India and tried to set up a legal practice but could not achieve any success. In 1893, when an Indian firm in South Africa offered him the post of legal adviser Gandhi was only too happy to oblige and he set sail for South Africa. This decision alone changed the life of Gandhi, and with that, the destiny of an entire nation. As he descended in South Africa, Gandhi was left appalled at the rampant racial discrimination against Indians and blacks by the European whites. 

Soon Gandhi found himself at the receiving end of such abuse and he vowed to take up the cudgels on behalf of the Indian community. He organized the expatriate Indians and protested against the injustices meted out by the African government. After years of disobedience and non-violent protests, the South African government finally conceded to Gandhi's demands and an agreement to this effect was signed in 1914. A battle was won, but Gandhi realized the war that was to be waged against the British awaits his arrival in India. He returned to India the next year.

After reaching India, Gandhi traveled across the length and breadth of the country to witness first hand the atrocities of the British regime. He soon founded the Satyagraha Ashram and successfully employed the principles of Satyagraha in uniting the peasants of Kheda and Champaran against the government. After this victory Gandhi was bestowed the title of Bapu and Mahatma and his fame spread far and wide.

In 1921, Mahatma Gandhi called for the non-cooperation movement against the British Government with the sole object of attaining Swaraj or independence for India. Even though the movement achieved roaring success all over the country, the incident of mob violence in Chauri Chaura, Uttar Pradesh forced Gandhi to call off the mass disobedience movement. Consequent to this, Mahatma Gandhi took a hiatus from active politics and instead indulged in social reforms.

The year 1930 saw Gandhi's return to the fore of Indian freedom movement and on March 12, 1930 he launched the historic Dandi March to protest against the tax on salt. The Dandi March soon metamorphosed into a huge civil disobedience movement. The Second World War broke out in 1939 and as the British might began to wane, Gandhi called for the Quit India movement on August 8, 1942. Post World War, the Labour Party came to power in England and the new government assured the Indian leadership of imminent independence. 

The Cabinet Mission sent by the British government proposed for the bifurcation of India along communal lines which Gandhi vehemently protested. But eventually he had to relent and on the eve of independence thousands lost their lives in communal riots. Gandhi urged for communal harmony and worked tirelessly to promote unity among the Hindus and Muslims. But Mahatma's act of benevolence angered Hindu fundamentalists and on January 13, 1948 he was assassinated by Hindu fanatic Nathuram Godse.

Tuesday 28 January 2014

जनहित याचिका के ऐतिहासिक नतीजे



भोजन का अधिकार
बात 2001 की है. देश के कई राज्यों में भीषण सुखाड़ पड़ी थी. लोग दाने-दाने के लिए तरस रहे थे. भूख से मौत हो रही थी. दूसरी ओर सरकारी गोदामों में अनाज भरे पड़े थे. यह शासन का जनता के प्रति घोर अमानवीय व्यवहार था. तब पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज) की राजस्थान इकाई ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की. उसने संविधान की धारा 21 का हवाला देते हुए कहा भारत के प्रत्येक नागरिक को जीने का अधिकार है.

सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार जीने के अधिकार को परिभाषित किया है और इज्जत से जीवन जीने के अधिकार और रोटी के अधिकार की बात कही है. इस जनहित याचिका के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य किया कि भूख से कोई मौत न हो. इस मुकदमे को भोजन के अधिकार केस के नाम से जाना जाता है.
दिल्ली बनी प्रदूषण मुक्त
दिल्ली के रिहायशी इलाकों में लाखों औद्योगिक इकाइयां चल रही थीं. उनसे बड़े पैमाने पर प्रदूषण फैल रहा था. इससे आम जनजीवन प्रभावित था. इस प्रदूषण को कम करने और दिल्ली मास्टर प्लान बनाने को लेकर 1985 में सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गयी. एमसी मेहता बनाम भारतीय संघ और अन्य के नाम से यह मुकदमा करीब सोलह साल चला. इस लंबे चले केस में अदालत ने रिहायशी इलाकों से करीब एक लाख औद्योगिक इकाइयों को बाहर ले जाने का आदेश दिया. हालांकि इस फैसले की आलोचना भी हुई. आलोचना की एक वजह यह भी थी कि इससे इन औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाले करीब 20 लाख लोग प्रभावित हुए.
जनहित याचिका ने लाया सीएनजी
महानगरों में सीएनजी इंधन से बसों और ऑटो रिक्शा को चलाने की व्यवस्था जनहित याचिका की ही देन है. सर्वोच्च न्यायालय ने इसी के आधार पर यह आदेश दिया कि दिल्ली की सीटी बसों को योजना बना कर डीजल से सीएनजी में बदला जाये, ताकि प्रदूषण की दर में कमी आये.
फीस बढ़ाने की स्कूलों की मनमानी पर रोक
बात 1997 की है. दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की गयी और निजी स्कूलों द्वारा फीस बढ़ाने में मनमानी करने पर रोक की मांग की गयी. न्यायालय ने 1998 में अपना निर्णय दिया, जिसमें कहा गया कि स्कूलों को व्यवसाय का जरिया नहीं बनाया जा सकता, लेकिन 2009 में स्कूलों ने यह कहते हुए फीस बढ़ा दी कि छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए ऐसा करना उनकी बाध्यता है. अशोक अग्रवाल नामक व्यक्ति ने इसे जनहित याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय में उठाया. कोर्ट ने फीस बढ़ाने की बाध्यता की जांच के लिए अनिल देव कमेटी का गठन किया. कमेटी ने दो सौ स्कूलों के रिकॉर्ड की जांच की. जांच में पाया गया कि 64 स्कूलों ने फीस बढ़ाने में मनमानी की है. उसने बढ़ी फीस को सूद समेत लौटाने का आदेश देने की सिफारिश की.
बचपन बचाओ आंदोलन की बड़ी पहल
बचपन बचाओ आंदोलन के भुवन नामक कार्यकर्ता ने जनवरी 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर प्लेसमेंट एजेंसियों द्वारा काम दिलाने के नाम पर बच्चों और औरतों की तस्करी पर रोक लगाने की मांग की. तब यह बात उजागर हुई कि सरकार ने ऐसी एजेंसियों पर अंकुश रखने के लिए कोई कानून ही नहीं बनाया है. इस मामले के उजागर होने के बाद प्लेसमेंट कंपनियों के लिए श्रम विभाग के अधीन पंजीयन कराने की व्यवस्था बनी. इस पूरी कार्रवाई में करीब दो साल का समय लगा.
झुग्गी-झोपड़ी वालों कों मिला आश्रय
दिल्ली में एक बड़ी आबादी झुग्गी-झोपड़ी में रहती है. सरकार मास्टर प्लान, विकास और अतिक्रमण हटाने के नाम पर ऐसी बस्तियों को उजाड़ देती है. उन्हें बसाने को लेकर चिंता नहीं की जाती है. इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की गयी और दिल्ली सरकार एवं एमसीडी को निर्देश देने की गुहार लगायी कि वह गरीबों को उजाड़ने के पहले उन्हें बसाए, क्योंकि वे भी भारत के नागरिक हैं और उन्हें भी जीने का अधिकार है. कोर्ट ने सरकार और एमसीडी को ऐसी किसी भी बस्ती को उजाड़ने के पहले उन्हें बसाने तथा उन बस्तियों में सभी बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने का आदेश दिया.
रिक्शा चालकों को राहत
दिल्ली के रिक्शा चालकों को जनहित याचिका से जीविका का अधिकार मिला. हुआ ऐसा कि एमसीडी ने रिक्शा चालकों को यह कह कर लाइसेंस देना बंद कर दिया कि 99 हजार ज्यादा रिक्शे को लाइसेंस दिया जा चुका है और संख्या उसके द्वारा तय की गयी सीमा से ज्यादा है. उसने यह भी नियम लागू किया कि रिक्शा वही चलायेगा, जो उसका मालिक होगा. इससे हजारों गरीब बेकार हो गये. उनकी ओर से दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी. कोर्ट ने एमसीडी को रिक्शों को लाइसेंस देने की संख्या की ऊपरी संख्या को बढ़ाने का निर्देश दिया और रिक्शा चालक के उसके मालिक होने के नियम को रद्द कर दिया.
कहां करें याचिका
कोई व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय में और अनुच्छेद-32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर सकता है. सामान्यत: पहले उच्च न्यायालय में और वहां खारिज होने पर सर्वोच्च न्यायालय में जनहित दायर किया जाता है. अगर कोई मामला केंद्र सरकार और व्यापक जनहित से जुड़ा हो, तो ऐसे मामले में सीधा सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की जा सकती है.
कैसे कर सकते हैं जनहित याचिका दायर
कोई व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय में और अनुच्छेद-32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर सकता है. सामान्यत: पहले उच्च न्यायालय में और वहां खारिज होने पर सर्वोच्च न्यायालय में जनहित दायर किया जाता है. अगर कोई मामला केंद्र सरकार और व्यापक जनहित से जुड़ा हो, तो ऐसे मामले में सीधा सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की जा सकती है.
पत्र के जरिये जनहित याचिका दायर करने की विधि
इसमें देश के किसी भी हिस्से में रहने वाला कोई व्यक्ति संबंधित उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर ऐसे मामले में हस्तक्षेप करने और सरकार को निर्देश देने की गुहार लगा सकता कि जो जनहित से जुड़ा हो और जिसमें मूल अधिकार का हनन हो रहा हो. पत्र में यह बताना होता है और उसके साथ ऐसे साक्ष्य लगाये जाते हैं, जिनसे यह साबित होता है कि मामला जनहित का है. तब कोर्ट यह देखता है कि मामला वास्तव में जनहित में या नहीं? जब पत्र के आधार पर कोर्ट संज्ञान लेता है, तो उसे पत्र को जनहित याचिका के रूप में स्वीकृत माना जाता है. तब कोर्ट संबंधित पक्ष को नोटिस भेजता है और याचिका दायर करने वाले को अपनी बात साबित करने का अवसर देता है. इसके लिए जरूरत पड़ने पर उसे सरकारी वकील भी उपलब्ध कराया जाता है. इसमें दो बातें खास हैं. पत्र उसी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भेजा जाता है, जिस राज्य से संबंधित मामला हो, लेकिन इसके लिए यह जरूरी नहीं है कि पत्र लिखने वाला यानी जनहित याचिका लाने वाला व्यक्ति भी उसी राज्य का हो.
लेटर लिखने के लिए कोर्ट के पते इस तरह हैं :
चीफ जस्टिस
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
तिलक मार्ग, नई दिल्ली- 110001
चीफ जस्टिस
पटना उच्च न्यायालय, बेली रोड, पटना
चीफ जस्टिस
झारखंड उच्च न्यायालय
रांची
कोर्ट का स्वत: संज्ञान
कोर्ट खुद भी ऐसे मामले में संज्ञान लेता है. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय किसी भी माध्यम में प्राप्त ऐसी सूचना पर स्वत: संज्ञान लेता है, जिसमें मौलिक अधिकार या संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन हुआ है. इसमें समाचार-पत्र छपी या चैनलों में दिखायी गयी खबरें भी आधार बनती हैं. इसमें कोर्ट द्वारा संबंधित सरकार और पक्ष को सीधा नोटिस भेजा जाता है.

Monday 27 January 2014

जनहित याचिका लोकतंत्र का पांचवां स्तंभ



हम अपने संविधान की चाहे जितनी आलोचना कर लें और इसे जितना बेकार कह लें, सच यह है कि अब तक इसने ही देश के नागरिकों को सम्मान से जीने का अधिकार दिया है और उस अधिकार के अतिक्रमण को दूर करने का रास्ता भी इसी ने दिया. इसका एक बड़ा उदाहरण है जनहित याचिका. यह जनता के संवैधानिक अधिकारों के इस्तेमाल और अदालत के कानूनी अधिकार से ही संभव हुआ है. 

यह मुकदमे का एक प्रकार है, जो सामान्य मुकदमे से अलग है. इसके जरिये ऐसे विषयों पर न्यायालय से हस्तक्षेप और निर्देश की मांग की जाती है, जो व्यापक जनहित से जुड़े हों. यह लोकहित की रक्षा के लिए मुकदमे का एक ऐसा प्रावधान है, जिसने देश की जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों को बड़ी ताकत दी है. इसके अब तक के इस्तेमाल और नतीजों को देखें, तो साफ पता चलता है कि इसके जरिये लोकहित, संविधानहित और राष्ट्रहित में आम जनता ने सरकार, संसद, सेना, प्रशासन और न्यायालय के कामकाज के तौर-तरीकों में हस्तक्षेप किया है.  झारखंड और बिहार में बालू घाटों की बंदोबस्ती को लेकर दायर जनहित याचिकाएं सुर्खियों में रहीं. झारखंड में सरकार बैक फुट पर रही, जबकि बिहार का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है.
 

पटना हाई कोर्ट के 16 दिसंबर के अंतरिम आदेश के खिलाफ हेमंत कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिस पर अगले माह (फरवरी) में सुनवाई होनी है. अभी पुलिसकर्मियों के निलंबन की मांग को लेकर धरना देने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार के कानून मंत्री सोमनाथ भारती के खिलाफ अधिवक्ता एमएल शर्मा एवं अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. इस पर शुक्रवार, 24 जनवरी को सुनवाई शुरू हुई. सूचना का अधिकार अधिनियम आने के बाद गुणवत्तापूर्ण जनहित याचिका दाखिल करने की दर बढ़ी है. इसकी वजह है कि लोगों को सरकारी तंत्र से वैसी जानकारी और दस्तावेज प्रमाणिक रूप में मिलने लगे हैं, जिन्हें इससे पहले गुप्त बात अधिनियम, 1923 का हवाला देकर गोपनीय करार दिया जाता था और जनता से सही सूचना छुपायी जाती थी. अगर देखें, तो जनहित याचिका दाखिल करने का अधिकार लोकतंत्र का पांचवां स्तंभ है. हम इस अंक में इसी विषय पर विस्तार से बात कर रहे हैं.
आरके नीरद
भारतीय संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को कुछ मूल अधिकार दिये हैं. इनकी संख्या छह है. इनमें स्वतंत्रता, समानता, शिक्षा और सांस्कृतिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार एवं शोषण के खिलाफ अधिकार और मूल अधिकार पाने के उपाय.
जब भी किसी आम या खास नागरिक के इनमें से किसी अधिकार कर हनन होता है, तो वह याचिका दायर कर सकता है. इसके जरिये वह अपने संवैधानिक मूल अधिकारों की रक्षा के लिए गुहार लगा सकता है.
याचिका दो तरह की
याचिका दो तरह की है. एक व्यक्तिगत हित और दूसरा जनहित. जब ऐसे किसी विषय का संबंध व्यापक जनहित से हो, उसे जनहित याचिका कहते हैं. व्यक्तिगत हित की याचिका और जनहित याचिका में एक बुनियादी अंतर और है. जब कोई व्यक्ति अपने किसी मूल अधिकार के हनन के  खिलाफ याचिका दायर करता है, तो उसे केवल यह सिद्ध करना होता है कि उस मामले से उसका हित जुड़ा हुआ है. जैसे प्रोन्नति, वेतन, शिक्षा और रोजगार के अवसर आदि. जब जनहित याचिका दायर कर जाती है, तब व्यक्ति को यह सिद्ध करना होता है कि कैसे मामला जनहित यानी आम लोगों के हितों से जुड़ा है. पर्यावरण संरक्षण, भोजन का अधिकार, जीने का अधिकार आदि. दोनों मामले अलग-अलग हैं. निजी हित से जुड़े मामलों में दायर याचिका को पर्सनल इंट्रेस्ट लिटिगेशन कहते हैं. कोर्ट को यह तय करने का अधिकार है कि याचिका पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन या पर्सनल इंट्रेस्ट लिटिगेशन.
न्यायालय की व्याख्या से निकली जनहित याचिका
सबसे दिलचस्प यह है कि जिस तरह संविधान में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया या पत्रकारिता का उल्लेख नहीं है, लेकिन उसने अपनी सक्रियता, प्रभाव और परिणाम के आधार पर यह स्थान प्राप्त किया है. उसी प्रकार जनहित याचिका की संविधान में कोई परिभाषा नहीं है. उस व्याख्या से उत्पन्न हुआ है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने जनहित से जुड़े अलग-अलग मुकदमों की समीक्षा में व्यक्त किया. ठीक सूचनाधिकार की तरह इसमें इसकी जरूरत नहीं होती कि कोई पीड़ित व्यक्ति स्वयं अदालत में पेश हो. कोई दूसरा व्यक्ति भी पीड़ित की ओर से न्यायालय में जनहित दायर कर सकता है. न्यायालय स्वयं भी ऐसे मामले में संज्ञान ले सकता है और लेता रहा है. जनहित याचिका का प्रयोग किसी भी ऐसे क्षेत्र में हो सकता है, जो किसी नागरिक के मौलिक अधिकार और कर्तव्य में बाधा पैदा करता है या जिससे संवैधानिक और न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है. बाल मजदूरी, बंधुआ मजदूरी, बाल पोषण, मध्याह्न् भोजन, आपदा प्रबंधन, सामाजिक सुरक्षा, भूख से मौत एवं खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण एवं प्राकृतिक संसाधनों के दोहन एवं उत्खनन, नागरिक सुविधा एवं सुरक्षा, शहरी विकास, उपभोक्ता संरक्षण, शिक्षा के अवसर और नीतियां, निष्पक्ष और निर्भीक चुनाव, राजनीति और मानवाधिकार तथा न्यायालय से जुड़े मामले जनहित के विषय बनते रहे हैं. इसने न्यायिक सक्रियता को भी बढ़ाया है.
विषयों पर जनहित याचिका दाखिल की जा सकती है
आवासीय इलाकों में घरों की छतों पर मोबाइल कंपनियों के टावर. यह मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. ज्यादातर मकानों का निर्माण इस तरह के टावर लगाने के लिए नहीं किया गया है. ऐसे मकान व्यावसायिक उपयोग के लिए भी नहीं हैं तथा उनके नक्शे में मोबाइल  टावर लगाने का प्लान नहीं है. यह कानूनी तौर पर गलत है.
झारखंड और बिहार के निजी स्कूलों में बच्चों की किताब, कॉपी, पोशाक, बैग आदि भी बेची जाती है. इसके लिए आपूर्तिकर्ता और विद्यालय प्रबंधन के बीच गुप्त समझौता रहता है. जिला शिक्षा  अधीक्षक और जिला शिक्षा पदाधिकारी की भी इसमें मौन सहमति होती है. बुक स्टोर में इस तरह की किताब और कॉपी की खरीद पर आपको 10 से 15 प्रतिशत तक  छूट मिलती है, लेकिन स्कूल के अंदर बेची जाने वाली किताब-कॉपी पर कोई  छूट दी जाती है. इसमें लाखों रुपये का खेल होता है, जबकि कोर्ट कह चुका है कि स्कूलों का व्यवसायीकरण नहीं हो सकता.

निजी बसों में मोटर वाहन अधिनियम और परमिट की शर्तो का पालन नहीं होता. बस के चालक और कंडक्टर की पहचान के लिए कुछ भी व्यवस्था नहीं है. वे न तो खास पोशाक में होते हैं और न ही उनकी कमीज पर कोई नामपट्ट होता है, जिससे कि उन्हें पहचाना जा सके. यह सीधा-सीधा मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. एक पुलिस पदाधिकारी को वरदी मिलती है और उन्हें अपनी कमीज पर अपना नेम प्लेट लगाना होता है, जबकि इन बस चालकों और कंडक्टरों के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं है.

Sunday 26 January 2014

संविधान ने दी गांव के आम लोगों को बड़ी ताकत



देश में हाल के दिनों में गणतंत्र दिवस को लेकर लोगों के मन में एक अलग तरह का दुराव पैदा हो गया है. लोगों को लगता है कि गणतंत्र दिवस मनाना बेकार बात है, झंडा फहराने और परेड करने से क्या फर्क पड़ता है. मगर पिछले दिनों एक दलित महिला विचारक ने कहा कि देश के सभी वंचितों को गणतंत्र दिवस जरूर मनाना चाहिये, क्योंकि इस देश के लोगों को आजादी तो 15 अगस्त को मिली मगर देश के वंचित वर्ग के लोगों को समान स्थितियां देश के संविधान ने प्रदान की.

इसी ने हमें समानता, स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अधिकार दिये. वंचित वर्ग के लोगों को समान स्थिति में लाने के लिए आरक्षण की सुविधा दी और आने वाले समय में सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, रोजगार गारंटी और भोजन का अधिकार जैसे अधिकार दिये. अगर ये अधिकार नहीं होते तो गांव के कम पढ़े लिखे और गरीब लोग, वंचित समुदाय के लोगों की स्थितियां कभी नहीं बदलतीं. इसलिए हमें गणतंत्र दिवस और संविधान से जुड़े प्रावधानों का स्वागत जरूर करना चाहिये. इस बात को ध्यान में रखते हुए हम इस आलेख में हमें मिले संवैधानिक अधिकारों की चर्चा कर रहे हैं.
1. समानता का अधिकार
समानता का अधिकार संविधान की प्रमुख गारंटियों में से एक है. इसके तहत समान परिस्थितियों में सबके साथ समान व्यवहार किया जाना है. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर किसी व्यक्ति से भेदभाव नहीं किया जा सकता है. हालांकि, राज्य को महिलाओं और बच्चों या अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति सहित सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से राज्य को रोका नहीं गया है, ताकि वंचित वर्ग के लोगों को विशेष संरक्षण दिया जा सके. साथ ही समानता का अधिकार के तहत छुआछूत को एक दंडनीय अपराध घोषित किया गया है. इन अधिकारों के जरिये ही राष्ट्र का बड़ा से बड़ा व्यक्ति और गांव का साधारण किसान-मजदूर देश में बराबरी का स्तर रखता है.
2. स्वतंत्रता का अधिकार
समानता के साथ-साथ व्यक्तिगत अधिकारों की गारंटी देने की दृष्टि से स्वतंत्रता के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल किया गया है. स्वतंत्रता का अधिकार में शामिल हैं भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, एकत्र होने की स्वतंत्रता, हथियार रखने की स्वतंत्रता, भारत के राज्यक्षेत्र में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता, भारत के किसी भी भाग में बसने और निवास करने की स्वतंत्रता तथा कोई भी पेशा अपनाने की स्वतंत्रता. बाद में इसके तहत अनेक अधिकारों को शामिल किया गया है जिनमें शामिल हैं आजीविका, स्वच्छ पर्यावरण, अच्छा स्वास्थ्य, अदालतों में त्वरित सुनवाई तथा कैद में मानवीय व्यवहार से संबंधित अधिकार. प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के अधिकार को 2002 में मौलिक अधिकार बनाया गया है. इसके तहत छह से 14 साल की उम्र के लोगों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा की बात कही गयी है. स्वतंत्रता के अधिकार के तहत  गिरफ्तार और हिरासत में लिये गये लोगों को विशेष अधिकार दिये गये हैं, विशेष रूप से गिरफ्तारी के आधार सूचित किए जाने, अपनी पसंद के वकील से सलाह करने, गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने और मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना उस अवधि से अधिक हिरासत में न रखे जाने का अधिकार.
3. शोषण के खिलाफ अधिकार
इसके तहत राज्य या व्यक्तियों द्वारा समाज के कमजोर वर्गों का शोषण रोकने के लिए कुछ प्रावधान किए गये हैं. अनुच्छेद 23 के प्रावधान के अनुसार मानव तस्करी को प्रतिबंधित और दंडनीय अपराध बनाया गया है, साथ ही किसी व्यक्ति को पारिश्रमिक दिए बिना काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. हालांकि, सरकार सार्वजनिक प्रयोजन के लिए सेना में अनिवार्य भर्ती तथा सामुदायिक सेवा सहित, अनिवार्य सेवा लागू कर सकती है. बंधुआ श्रम व्यवस्था (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 को इस अनुच्छेद में प्रभावी करने के लिए संसद द्वारा अधिनियमित किया गया है. कारखानों, खानों और अन्य खतरनाक नौकरियों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम कराना प्रतिबंधित है.
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
संविधान के अनुसार, भारत का कोई आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है और राज्य द्वारा सभी धर्मों के साथ निष्पक्षता और तटस्थता से व्यवहार किया जाना चाहिए. सभी लोगों को विवेक की स्वतंत्रता तथा अपनी पसंद के धर्म के उपदेश, अभ्यास और प्रचार की स्वतंत्रता की गारंटी है. हालांकि, प्रचार के अधिकार में किसी अन्य व्यक्ति के धर्मातरण का अधिकार शामिल नहीं है,
क्योंकि इससे उस व्यक्ति के विवेक के अधिकार का हनन होता है. सभी धार्मिक संप्रदायों तथा पंथों को सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता तथा स्वास्थ्य के अधीन अपने धार्मिक मामलों का स्वयं प्रबंधन करने, अपने स्तर पर धर्मार्थ या धार्मिक प्रयोजन से संस्थाएं स्थापित करने और कानून के अनुसार संपत्ति रखने, प्राप्त करने और उसका प्रबंधन करने के अधिकार की गारंटी देता है. राज्य द्वारा वित्तपोषित शैक्षिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती न ही किसी को धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने या धार्मिक पूजा में भाग लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
कम आबादी वाले लोग बहुसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक दबाव में नहीं आयें इसके लिए उन्हें अपनी विरासत का संरक्षण करने हेतु कई अधिकार दिये गये हैं. लोग अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि और संस्कृति का संरक्षण कर सकते हैं और उसका विकास कर सकते हैं. इसके लिए अपने पसंद की शैक्षिक संस्थाएं स्थापित की जा सकती है. हालांकि शब्द अल्पसंख्यक को संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गयी व्याख्या के अनुसार इसका अर्थ है कोई भी समुदाय जिसके सदस्यों की संख्या, उस राज्य की जनसंख्या के 50 प्रतिशत से कम हो.
संवैधानिक उपचारों का अधिकार
इसके तहत अगर किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता हो तो वह सर्वोच्च न्यायालय में इसके खिलाफ अपील कर सकता है. सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध, उत्प्रेषण और अधिकार पृच्छा प्रादेश जारी करने का अधिकार दिया गया है, जबकि उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न होने पर भी इन विशेषाधिकार प्रादेशों को जारी करने का अधिकार दिया गया है. निजी संस्थाओं के खिलाफ भी मौलिक अधिकार को लागू करना तथा उल्लंघन के मामले में प्रभावित व्यक्ति को समुचित मुआवजे का आदेश जारी करना सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्रधिकार में है. सर्वोच्च न्यायालय अपनी प्रेरणा से या जनहित याचिका के आधार पर अपने क्षेत्रधिकार का प्रयोग कर सकता है.
आरक्षण
आरक्षण इस देश के वंचित समुदाय को संविधान की तरफ से दिया गया बेहतरीन तोहफा है. इस देश में हजारों सालों से वंचितों की तरह जी रहे आदिवासी, दलित, पिछड़े, महिलाएं और विकलांगों को अवसर की समानता उपलब्ध कराने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है. पहले सिर्फ सरकारी नौकरियों में किया गया प्रावधान अब पंचायती राज व्यवस्था में भी लागू किया गया है. जिसे बड़ी संख्या में महिलाएं और वंचित समूह के लोगों को गांव और पंचायतों का नेतृत्व करने का मौका मिला. सामान्य परिस्थितियों में यह असंभव था कि किसी सामान्य गांव में एक महिला या एक आदिवासी या वंचित समुदाय का कोई व्यक्ति मुखिया बन सके. इसके सकारात्मक प्रभाव नजर आये हैं. सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व की वजह से जहां वंचित समुदाय के लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है और उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिला है. वहीं पंचायतों में महिलाओं और वंचितों के प्रतिनिधित्व की वजह से विकास के परिदृश्य में भी सकारात्मक बदलाव नजर आ रहा है.
रोजगार गारंटी
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के जरिये गांव के लोगों को उनके ही गांव में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान बनाया गया है. हालांकि इन कानून को ठीक से लागू नहीं किये जाने के कारण इसका लाभ अब तक लोगों को ठीक से नहीं मिल पाया है. मगर आने वाले समय में यह गांव के लोगों के लिए बड़ा बदलाव लेकर आयेगा. इस कानून के तहत हर इंसान को सौ दिन का रोजगार दिये जाने की गारंटी है और अगर सरकार किसी को रोजगार उपलब्ध कराने में विफल रहती है तो उसे उस व्यक्ति को बेरोजगारी भत्ता के तहत मजदूरी उपलब्ध कराना है. हालांकि आज भी देश में मजदूरों को बमुश्किल साल में 25-30 दिनों का ही रोजगार मिल पाता है, मगर लोग जागरूकता के अभाव में बेरोजगारी भत्ता भी प्राप्त करने में विफल रहते हैं.  अगर मनरेगा का ठीक से अनुपालन हो तो गांव से गरीबी और बेरोजगारी को खत्म करने की दिशा में बड़ी सफलता हासिल की जा सकती है.
भोजन का अधिकार
मनरेगा की तरह ही हाल के दिनों में लोगों को भोजन का अधिकार मिला है. इस अधिकार के तहत यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि देश के किसी व्यक्ति की मौत भूख से न हो और न ही कोई कुपोषित रहे. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार इसे भी मौलिक अधिकारों की श्रेणी में माना गया है. इस अधिकार के तहत बने कानून के जरिये देश के तकरीबन 70 फीसदी लोगों को बहुत कम मूल्य में खाद्यान्न और दूसरी वस्तुएं उपलब्ध कराने का प्रावधान है. इससे गांवों में कोई भूखे पेट सोयेगा नहीं. लोगों को अनाज की किल्लत नहीं होगी. बहुत जल्द इस कानून के प्रभावी होने की उम्मीद है.
सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार भारत के लोगों को मिला अपनी तरह का एक अनूठा अधिकार है. अब तक देश की ब्यूरोक्रेसी सरकार के कामकाज के बारे में देश के लोगों को जानकारी नहीं देती थी. मगर अपने देश में जनता को मालिक और अधिकारियों को सेवक माना जाता है और सेवक  कामकाज के बारे में अपने स्वामी को सूचना न दे तो इसे कैसे ठीक समझा जाये. इसी वजह से सूचना के अधिकार को कानूनी जामा पहनाया गया है. अब देश का कोई नागरिक वांछित राशि देकर सरकार से किसी सूचना की मांग कर सकता है. सूचना का अधिकार लागू होने से भ्रष्टाचार को रोकने की दिशा में कई सार्थक प्रयास हुए हैं. हाल के दिनों में देश में जो भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बना है उसके पीछे सूचना का अधिकार की बड़ी ताकत है. आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेता अरविंद केजरीवाल इस कानून के बड़े पैरोकार माने जाते हैं.
वनाधिकार अधिनियम
झारखंड के संदर्भ में यह कानून बड़ा महत्वपूर्ण है. इस कानून के तहत यह माना गया है कि जंगलों की सुरक्षा और उसका संवर्धन उसके साथ रहने वाले लोग ही कर सकते हैं. अत: यह अधिकार उन्हीं को दे दिया जाये. हालांकि इस कानून को लागू करने में भी काफी हीला-हवाला होता रहा है. इस कानून के तहत वनों में रहने वाले लोगों को न सिर्फ जमीन के पट्टे वितरित किये जाने हैं बल्कि पूरे के पूरे गांव को उनके इलाके के वन क्षेत्र के प्रबंधन का अधिकार भी दिया जाना है. अभी लोगों को व्यक्तिगत पट्टे ही दिये जा रहे हैं, इसके बाद सामूहिक पट्टे भी दिये जायेंगे. एक बार लोगों को पट्टे दे दिया गये तो इससे लोगों की ताकत में बड़ा इजाफा होगा और वनों की सुरक्षा भी ठीक से हो सकेगी.
शिक्षा का अधिकार
हालांकि इस अधिकार को स्वतंत्रता के अधिकार में शामिल किया गया है, मगर इस पर अलग से चर्चा करने की जरूरत है. यह अधिकार न सिर्फ शत-प्रतिशत शिक्षा का उपाय करती है, बल्कि बच्चों को बेहतर जीवन अवसर उपलब्ध कराने में भी मदद करती है. बाल श्रम और दूसरे तरह के शोषण से भी उसे बचाती है. इस अधिकार के तहत छह से 14 साल तक के बच्चे को मुफ्त एवं अनिवार्य रूप से स्कूल भेजना जरूरी है. इस संबंध में अभिभावक समेत जो लोग भी जिम्मेदार होंगे, उन्हें दंडित करने की बात की गयी है. बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए इस कानून के तहत कई प्रावधान किये गये हैं. जैसे मध्याह्न भोजन, ड्रेस, मुफ्त किताबें और कई राज्यों में साइकिल तक बांटी जाती हैं. इस अधिकार से आने वाले सालों में गांवों की सूरत बदल जायेगी.

Saturday 25 January 2014

Republic Day in India



Republic Day in India

About Republic Day
 26th January 1950 is one of the most important days in Indian history as it was on this day the constitution of India came into force and India became a truly sovereign state. In this day India became a totally republican unit. The country finally realized the dream of Mahatma Gandhi and the numerous freedom fighters who, fought for and sacrificed their lives for the Independence of their country. So, the 26th of January was decreed a national holiday and has been recognized and celebrated as the Republic Day of India, ever since.


   Today, the Republic Day is celebrated with much enthusiasm all over the country and especially in the capital, New Delhi where the celebrations start with the Presidential to the nation. The beginning of the occasion is always a solemn reminder of the sacrifice of the martyrs who died for the country in the freedom movement and the succeeding wars for the defense of sovereignty of their country. Then, the President comes forward to award the medals of bravery to the people from the armed forces for their exceptional courage in the field and also the civilians, who have distinguished themselves by their different acts of valour in different situations.


   To mark the importance of this occasion, every year a grand parade is held in the capital, from the Rajghat, along the Vijaypath. The different regiments of the army, the Navy and the Air force march past in all their finery and official decorations even the horses of the cavalry are attractively caparisoned to suit the occasion. The crème of N.C.C cadets, selected from all over the country consider it an honour to participate in this event, as do the school children from various schools in the capital. They spend many days preparing for the event and no expense is spared to see that every detail is taken care of, from their practice for the drills, the essential props and their uniforms.


   The parade is followed by a pageant of spectacular displays from the different states of the country. These moving exhibits depict scenes of activities of people in those states and the music and songs of that particular state accompany each display. Each display brings out the diversity and richness of the culture of India and the whole show lends a festive air to the occasion. The parade and the ensuing pageantry is telecast by the National Television and is watched by millions of viewers in every corner of the country.


   The patriotic fervor of the people on this day brings the whole country together even in her essential diversity. Every part of the country is represented in occasion, which makes the Republic Day the most popular of all the national holidays of India.
What do people do?
Much effort is put towards organizing events and celebrations that occur on Republic Day in India. Large military parades are held in New Delhi and the state capitals. Representatives of the Indian Army, Navy and Air Force and traditional dance troupes take part in the parades.
A grand parade is held in New Delhi and the event starts with India's prime minister laying a wreath at the Amar Jawan Jyoti at India Gate, to remember soldiers who sacrificed their lives for their country. India's president takes the military salute during the parade in New Delhi while state governors take the military salutes in state capitals. A foreign head of state is the president's chief guest on Republic Day.
Awards and medals of bravery are given to the people from the armed forces and also to civilians. Helicopters from the armed forces then fly past the parade area showering rose petals on the audience. School children also participate in the parade by dancing and singing patriotic songs. Armed Forces personnel also showcase motorcycle rides. The parade concludes with a "fly past" by the Indian Air Force, which involves fighter planes of flying past the dais, symbolically saluting the president. These leave trails of smoke in the colors of the Indian flag.
There are many national and local cultural programs focusing on the history and culture of India. Children have a special place in these programs. Many children receive gifts of sweets or small toys. A prime minister's rally also takes place around this time of the year, as well as the Lok Tarang – National Folk Dance Festival, which occurs annually from January 24-29.
Public life
Republic Day is a gazetted holiday in India on January 26 each year. National, state and local government offices, post offices and banks are closed on this date. Stores and other businesses and organizations may be closed or have reduced opening hours.
Public transport is usually unaffected as many locals travel for celebrations. Republic Day parades cause significant disruption to traffic and there may be increased security on this date, particularly in areas such as New Delhi and state capitals.
Background
India became independent of the United Kingdom on August 15, 1947. India did not have a permanent constitution at this time. The drafting committee presented the constitution's first draft to the national assembly on November 4, 1947. The national assembly signed the final English and Hindi language versions of the constitution on January 24, 1950.
India's constitution came into effect on Republic Day, January 26, 1950. This date was chosen as it was the anniversary of Purna Swaraj Day, which was held on January 26, 1930.The constitution gave India's citizens the power to govern themselves by choosing their own government. Dr Rajendra Prasad took oath as India's first president at the Durbar Hall in the Government House, followed by a residential drive along a route to the Irwin Stadium, where he unfurled India's national flag. Ever since the historic day, January 26 is celebrated with festivities and patriotic fervor across India.
Symbols
Republic Day represents the true spirit of the independent India. Military parades, displays of military equipment and the national flag are important symbols on this date. India's national flag is a horizontal tricolor of deep saffron (kesaria) at the top, white in the middle and dark green at the bottom in equal proportion. The ratio of the flag's width to its length is two to three. A navy-blue wheel in the center of the white band represents the chakra. Its design is that of the wheel which appears on the abacus of the Sarnath Lion Capital of Ashoka. Its diameter approximates to the white band's width and it has 24 spokes.

Friday 24 January 2014

राष्ट्रीय मतदाता दिवस : क्योंकि हर एक वोट जरूरी है ........



भारत एक गणतांत्रिक देश है . एक गणतांत्रिक देश में सबसे अहम होता है चुनाव और मत देना . गणतंत्र एक यज्ञ की तरह होता है जिसमें मतों यानि वोटों की आहुति बेहद अहम मानी जाती है . यहां एक वोट भी सरकार और सत्ता बदलने के लिए काफी होती है . याद करिए वह समय जब माननीय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार मात्र एक वोट से अपनी सरकार बचाने में नाकाम रही थी . अब आप सोचिए कि ' आलस ' और ' मेरे एक वोट से क्या बदलेगा ' जैसे तकियाकलामों की वजह से देश को कितना नुकसान हुआ है ?

आप बदलिए सिस्टम भी बदलेगा

फेसबुक , ट्विटर या ब्लॉगिंग जगत में भारतीय सिस्टम और गंदी राजनीति पर बड़ी - बड़ी बहस करने वाले अकसर भारतीय गणतंत्र के इस यज्ञ में सिर्फ इसलिए वोट डालने नहीं जाते क्यूंकि उन्हें यहां लाइन में लगता पड़ता है , कुछ देर के लिए अनुशासन का पालन करना पड़ता है . आप सोच रहे होंगे कि अनुशासन का गणतंत्र से क्या वास्ता अब ? लेकिन है , एक बहुत बड़ा संबंध है . जो लोग ऐसा करते हैं वह यह भूल जाते हैं कि अनुशासन के बिना किसी भी पराधीन देश को स्वतंत्रता नहीं मिली यहां तक ​​कि भारत को भी आजादी के लिए गांधीजी द्वारा बनाए गए कड़े अनुशासन में रहना पड़ा था . और इस आजादी को बनाए रखने में हमारी गणतांत्रिक प्रणाली बेहद अहम है . गणतांत्रिक प्रणाली तभी सुचारु रूप से चल सकती है जब हर इंसान अपने मत का प्रयोग करे और अपनी इच्छा - अनिच्छा को जाहिर करे .

राष्ट्रीय मतदाता दिवस 2013: रुकिए , सोचिए , समझिए और कुछ करिए

अगर आपको लगता है कि पूरा सिस्टम ही खराब हो चुका है तो आप यह मत भूलिए कि आप भी उसी सिस्टम का हिस्सा हैं . अगर सब खराब है तो आप भी खराब हैं . एक छोटी सी बात सोच कर देखिए . अगर आप अपने क्षेत्र में सही विधायक को चाहेंगे तो उसके लिए आप वोट करेंगे . आप खुद अपने वोट के साथ अपने परिजनों से भी उसी नेता को मत देने के लिए कहेंगे . इस तरह आपकी कोशिश रंग लाएगी और आपके क्षेत्र में एक बेहतरीन विधायक चुनकर आएगा जो आपके क्षेत्र के लिए कार्य करेगा . उसी तरह अगर आप देश के आला नेता और यहां तक ​​कि प्रधानमंत्री को भी बदलना चाहते हैं तो आपका एक वोट भी बहुत अहम होगा .

राष्ट्रीय मतदाता दिवस : मतदाता भारतीय दिवस

भारतीय मतदाताओं का मतदान के प्रति घटते रुझान को दूर करने के लिए 2011 से भारतीय निर्वाचन आयोग ने हर साल 25 जनवरी के दिन राष्ट्रीय मतदाता दिवस मानने का निर्णय लिया है साल . दरअसल 25 जनवरी , 1950 को भारत निर्वाचन आयोग का गठन हुआ था . यह दिन भारत के सभी मतदाताओं के नाम है ताकि उन्हें लोकतंत्र के प्रति उनके दायित्वों की याद रहे और वह खुद इसके महत्व को समझ सकें . 26 जनवरी से पहले इस दिवस की प्रासंगिकता बेहद सटीक बैठती है .

दरअसल मतदाता और उसका मत ही लोकतंत्र या किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र का मूल आधार होता है भारतीय . पिछले कई वर्षों से भारतीय लोकतंत्र में मतदाताओं की मतदान में कम होती रुचि जनता की लोकतंत्र में घटती आस्था को इंगित करती है . इससे देश के राजनेताओं का चिंतित होना स्वाभाविक है . इसी चिंता को खत्म करने के लिए पिछले दो सालों से सरकार 25 जनवरी के दिन कई बड़े कदम उठाती है ताकि अधिक से अधिक मतदाता अपने मत का प्रयोग कर सकें खासकर युवा वर्ग . सरकार की यह कोशिश रंग भी लाई है जिसका प्रमाण है यूपी विधानसभा चुनावों और गुजरात चुनावों में पड़े रिकॉर्ड मतदान .

युवाओं के लिए एक बड़ी चुनौती
भारत में युवाओं की भागीदारी काफी अधिक है . हालांकि यह भी सच है कि देश की एक बड़ी आबादी अपनी उम्र का 18 वां साल पूरी करने के बावजूद मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने में असफल रह जाती है . इस महत्वपूर्ण और जटिल समस्या से निपटने के लिए ही सरकार ने कई अहम कदम उठाए हैं . आज जगह - जगह आपको ऐसे सेंटर मिलेंगे जहां मतदाता पहचान पत्र बनवाने के कार्य किए जाते हैं . हर जिले , ब्लॉक या गांव में जगह - जगह कैंप लगाकर भी इस कार्य को संपन्न किया जा रहा है .

बड़ी है चुनौती

भारत सरकार का यह जागरुकता अभियान अपने आप में एक उल्लेखनीय कदम है , परंतु मतदाता सूची में नामांकन की प्रक्रिया में और भी कई ऐसी कठिनाइयां हैं जिन पर चुनाव आयोग और सरकार को अधिक व्यावहारिक और प्रभावी निर्णय लेने की जरूरत है . शिक्षा का अभाव और सुदूर ग्रामीण और यहां तक ​​कि शहरी गरीब बस्तियों में भी जन्म प्रमाण पत्र का होना एक ऐसा बड़ा कारण है जिससे ग्रामीण और शहरी गरीबों , युवाओं और वयस्कों की बड़ी संख्या अक्सर मतदाता सूची में नामांकन से वंचित रह जाती है .

इसके अलावा काम की तलाश में एक बड़ी प्रवासी आबादी के मतदाता सूची में नामांकन की कोई सुचारु व्यवस्था होने के कारण भी काफी बड़ी आबादी मतदाता बनने से वंचित रह जाती है . हालांकि इस चुनौती को खत्म करने के लिए भी सरकार जल्द ही कोई बड़ा कदम उठा सकती है .
जब तक एक मतदाता को अपने मत का अर्थ नहीं समझ में आएगा तब तक भारत का सिस्टम बदलना मुश्किल है . सिस्टम को बदलने के लिए सभी को गणतंत्र का टीका लगाना होगा . मतदाताओं को समझना होगा कि उनका एक वोट केवल सरकार ही नहीं , बल्कि व्यवस्था बदलने का औजार भी बन सकता है और इसके जरिए खुद उस मतदाता का भाग्य भी बदल सकता है .