Sunday 26 January 2014

संविधान ने दी गांव के आम लोगों को बड़ी ताकत



देश में हाल के दिनों में गणतंत्र दिवस को लेकर लोगों के मन में एक अलग तरह का दुराव पैदा हो गया है. लोगों को लगता है कि गणतंत्र दिवस मनाना बेकार बात है, झंडा फहराने और परेड करने से क्या फर्क पड़ता है. मगर पिछले दिनों एक दलित महिला विचारक ने कहा कि देश के सभी वंचितों को गणतंत्र दिवस जरूर मनाना चाहिये, क्योंकि इस देश के लोगों को आजादी तो 15 अगस्त को मिली मगर देश के वंचित वर्ग के लोगों को समान स्थितियां देश के संविधान ने प्रदान की.

इसी ने हमें समानता, स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अधिकार दिये. वंचित वर्ग के लोगों को समान स्थिति में लाने के लिए आरक्षण की सुविधा दी और आने वाले समय में सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, रोजगार गारंटी और भोजन का अधिकार जैसे अधिकार दिये. अगर ये अधिकार नहीं होते तो गांव के कम पढ़े लिखे और गरीब लोग, वंचित समुदाय के लोगों की स्थितियां कभी नहीं बदलतीं. इसलिए हमें गणतंत्र दिवस और संविधान से जुड़े प्रावधानों का स्वागत जरूर करना चाहिये. इस बात को ध्यान में रखते हुए हम इस आलेख में हमें मिले संवैधानिक अधिकारों की चर्चा कर रहे हैं.
1. समानता का अधिकार
समानता का अधिकार संविधान की प्रमुख गारंटियों में से एक है. इसके तहत समान परिस्थितियों में सबके साथ समान व्यवहार किया जाना है. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर किसी व्यक्ति से भेदभाव नहीं किया जा सकता है. हालांकि, राज्य को महिलाओं और बच्चों या अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति सहित सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से राज्य को रोका नहीं गया है, ताकि वंचित वर्ग के लोगों को विशेष संरक्षण दिया जा सके. साथ ही समानता का अधिकार के तहत छुआछूत को एक दंडनीय अपराध घोषित किया गया है. इन अधिकारों के जरिये ही राष्ट्र का बड़ा से बड़ा व्यक्ति और गांव का साधारण किसान-मजदूर देश में बराबरी का स्तर रखता है.
2. स्वतंत्रता का अधिकार
समानता के साथ-साथ व्यक्तिगत अधिकारों की गारंटी देने की दृष्टि से स्वतंत्रता के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल किया गया है. स्वतंत्रता का अधिकार में शामिल हैं भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, एकत्र होने की स्वतंत्रता, हथियार रखने की स्वतंत्रता, भारत के राज्यक्षेत्र में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता, भारत के किसी भी भाग में बसने और निवास करने की स्वतंत्रता तथा कोई भी पेशा अपनाने की स्वतंत्रता. बाद में इसके तहत अनेक अधिकारों को शामिल किया गया है जिनमें शामिल हैं आजीविका, स्वच्छ पर्यावरण, अच्छा स्वास्थ्य, अदालतों में त्वरित सुनवाई तथा कैद में मानवीय व्यवहार से संबंधित अधिकार. प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के अधिकार को 2002 में मौलिक अधिकार बनाया गया है. इसके तहत छह से 14 साल की उम्र के लोगों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा की बात कही गयी है. स्वतंत्रता के अधिकार के तहत  गिरफ्तार और हिरासत में लिये गये लोगों को विशेष अधिकार दिये गये हैं, विशेष रूप से गिरफ्तारी के आधार सूचित किए जाने, अपनी पसंद के वकील से सलाह करने, गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने और मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना उस अवधि से अधिक हिरासत में न रखे जाने का अधिकार.
3. शोषण के खिलाफ अधिकार
इसके तहत राज्य या व्यक्तियों द्वारा समाज के कमजोर वर्गों का शोषण रोकने के लिए कुछ प्रावधान किए गये हैं. अनुच्छेद 23 के प्रावधान के अनुसार मानव तस्करी को प्रतिबंधित और दंडनीय अपराध बनाया गया है, साथ ही किसी व्यक्ति को पारिश्रमिक दिए बिना काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. हालांकि, सरकार सार्वजनिक प्रयोजन के लिए सेना में अनिवार्य भर्ती तथा सामुदायिक सेवा सहित, अनिवार्य सेवा लागू कर सकती है. बंधुआ श्रम व्यवस्था (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 को इस अनुच्छेद में प्रभावी करने के लिए संसद द्वारा अधिनियमित किया गया है. कारखानों, खानों और अन्य खतरनाक नौकरियों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम कराना प्रतिबंधित है.
4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
संविधान के अनुसार, भारत का कोई आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है और राज्य द्वारा सभी धर्मों के साथ निष्पक्षता और तटस्थता से व्यवहार किया जाना चाहिए. सभी लोगों को विवेक की स्वतंत्रता तथा अपनी पसंद के धर्म के उपदेश, अभ्यास और प्रचार की स्वतंत्रता की गारंटी है. हालांकि, प्रचार के अधिकार में किसी अन्य व्यक्ति के धर्मातरण का अधिकार शामिल नहीं है,
क्योंकि इससे उस व्यक्ति के विवेक के अधिकार का हनन होता है. सभी धार्मिक संप्रदायों तथा पंथों को सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता तथा स्वास्थ्य के अधीन अपने धार्मिक मामलों का स्वयं प्रबंधन करने, अपने स्तर पर धर्मार्थ या धार्मिक प्रयोजन से संस्थाएं स्थापित करने और कानून के अनुसार संपत्ति रखने, प्राप्त करने और उसका प्रबंधन करने के अधिकार की गारंटी देता है. राज्य द्वारा वित्तपोषित शैक्षिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती न ही किसी को धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने या धार्मिक पूजा में भाग लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
कम आबादी वाले लोग बहुसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक दबाव में नहीं आयें इसके लिए उन्हें अपनी विरासत का संरक्षण करने हेतु कई अधिकार दिये गये हैं. लोग अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि और संस्कृति का संरक्षण कर सकते हैं और उसका विकास कर सकते हैं. इसके लिए अपने पसंद की शैक्षिक संस्थाएं स्थापित की जा सकती है. हालांकि शब्द अल्पसंख्यक को संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गयी व्याख्या के अनुसार इसका अर्थ है कोई भी समुदाय जिसके सदस्यों की संख्या, उस राज्य की जनसंख्या के 50 प्रतिशत से कम हो.
संवैधानिक उपचारों का अधिकार
इसके तहत अगर किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता हो तो वह सर्वोच्च न्यायालय में इसके खिलाफ अपील कर सकता है. सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध, उत्प्रेषण और अधिकार पृच्छा प्रादेश जारी करने का अधिकार दिया गया है, जबकि उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न होने पर भी इन विशेषाधिकार प्रादेशों को जारी करने का अधिकार दिया गया है. निजी संस्थाओं के खिलाफ भी मौलिक अधिकार को लागू करना तथा उल्लंघन के मामले में प्रभावित व्यक्ति को समुचित मुआवजे का आदेश जारी करना सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्रधिकार में है. सर्वोच्च न्यायालय अपनी प्रेरणा से या जनहित याचिका के आधार पर अपने क्षेत्रधिकार का प्रयोग कर सकता है.
आरक्षण
आरक्षण इस देश के वंचित समुदाय को संविधान की तरफ से दिया गया बेहतरीन तोहफा है. इस देश में हजारों सालों से वंचितों की तरह जी रहे आदिवासी, दलित, पिछड़े, महिलाएं और विकलांगों को अवसर की समानता उपलब्ध कराने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है. पहले सिर्फ सरकारी नौकरियों में किया गया प्रावधान अब पंचायती राज व्यवस्था में भी लागू किया गया है. जिसे बड़ी संख्या में महिलाएं और वंचित समूह के लोगों को गांव और पंचायतों का नेतृत्व करने का मौका मिला. सामान्य परिस्थितियों में यह असंभव था कि किसी सामान्य गांव में एक महिला या एक आदिवासी या वंचित समुदाय का कोई व्यक्ति मुखिया बन सके. इसके सकारात्मक प्रभाव नजर आये हैं. सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व की वजह से जहां वंचित समुदाय के लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है और उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिला है. वहीं पंचायतों में महिलाओं और वंचितों के प्रतिनिधित्व की वजह से विकास के परिदृश्य में भी सकारात्मक बदलाव नजर आ रहा है.
रोजगार गारंटी
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के जरिये गांव के लोगों को उनके ही गांव में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान बनाया गया है. हालांकि इन कानून को ठीक से लागू नहीं किये जाने के कारण इसका लाभ अब तक लोगों को ठीक से नहीं मिल पाया है. मगर आने वाले समय में यह गांव के लोगों के लिए बड़ा बदलाव लेकर आयेगा. इस कानून के तहत हर इंसान को सौ दिन का रोजगार दिये जाने की गारंटी है और अगर सरकार किसी को रोजगार उपलब्ध कराने में विफल रहती है तो उसे उस व्यक्ति को बेरोजगारी भत्ता के तहत मजदूरी उपलब्ध कराना है. हालांकि आज भी देश में मजदूरों को बमुश्किल साल में 25-30 दिनों का ही रोजगार मिल पाता है, मगर लोग जागरूकता के अभाव में बेरोजगारी भत्ता भी प्राप्त करने में विफल रहते हैं.  अगर मनरेगा का ठीक से अनुपालन हो तो गांव से गरीबी और बेरोजगारी को खत्म करने की दिशा में बड़ी सफलता हासिल की जा सकती है.
भोजन का अधिकार
मनरेगा की तरह ही हाल के दिनों में लोगों को भोजन का अधिकार मिला है. इस अधिकार के तहत यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि देश के किसी व्यक्ति की मौत भूख से न हो और न ही कोई कुपोषित रहे. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार इसे भी मौलिक अधिकारों की श्रेणी में माना गया है. इस अधिकार के तहत बने कानून के जरिये देश के तकरीबन 70 फीसदी लोगों को बहुत कम मूल्य में खाद्यान्न और दूसरी वस्तुएं उपलब्ध कराने का प्रावधान है. इससे गांवों में कोई भूखे पेट सोयेगा नहीं. लोगों को अनाज की किल्लत नहीं होगी. बहुत जल्द इस कानून के प्रभावी होने की उम्मीद है.
सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार भारत के लोगों को मिला अपनी तरह का एक अनूठा अधिकार है. अब तक देश की ब्यूरोक्रेसी सरकार के कामकाज के बारे में देश के लोगों को जानकारी नहीं देती थी. मगर अपने देश में जनता को मालिक और अधिकारियों को सेवक माना जाता है और सेवक  कामकाज के बारे में अपने स्वामी को सूचना न दे तो इसे कैसे ठीक समझा जाये. इसी वजह से सूचना के अधिकार को कानूनी जामा पहनाया गया है. अब देश का कोई नागरिक वांछित राशि देकर सरकार से किसी सूचना की मांग कर सकता है. सूचना का अधिकार लागू होने से भ्रष्टाचार को रोकने की दिशा में कई सार्थक प्रयास हुए हैं. हाल के दिनों में देश में जो भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बना है उसके पीछे सूचना का अधिकार की बड़ी ताकत है. आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेता अरविंद केजरीवाल इस कानून के बड़े पैरोकार माने जाते हैं.
वनाधिकार अधिनियम
झारखंड के संदर्भ में यह कानून बड़ा महत्वपूर्ण है. इस कानून के तहत यह माना गया है कि जंगलों की सुरक्षा और उसका संवर्धन उसके साथ रहने वाले लोग ही कर सकते हैं. अत: यह अधिकार उन्हीं को दे दिया जाये. हालांकि इस कानून को लागू करने में भी काफी हीला-हवाला होता रहा है. इस कानून के तहत वनों में रहने वाले लोगों को न सिर्फ जमीन के पट्टे वितरित किये जाने हैं बल्कि पूरे के पूरे गांव को उनके इलाके के वन क्षेत्र के प्रबंधन का अधिकार भी दिया जाना है. अभी लोगों को व्यक्तिगत पट्टे ही दिये जा रहे हैं, इसके बाद सामूहिक पट्टे भी दिये जायेंगे. एक बार लोगों को पट्टे दे दिया गये तो इससे लोगों की ताकत में बड़ा इजाफा होगा और वनों की सुरक्षा भी ठीक से हो सकेगी.
शिक्षा का अधिकार
हालांकि इस अधिकार को स्वतंत्रता के अधिकार में शामिल किया गया है, मगर इस पर अलग से चर्चा करने की जरूरत है. यह अधिकार न सिर्फ शत-प्रतिशत शिक्षा का उपाय करती है, बल्कि बच्चों को बेहतर जीवन अवसर उपलब्ध कराने में भी मदद करती है. बाल श्रम और दूसरे तरह के शोषण से भी उसे बचाती है. इस अधिकार के तहत छह से 14 साल तक के बच्चे को मुफ्त एवं अनिवार्य रूप से स्कूल भेजना जरूरी है. इस संबंध में अभिभावक समेत जो लोग भी जिम्मेदार होंगे, उन्हें दंडित करने की बात की गयी है. बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए इस कानून के तहत कई प्रावधान किये गये हैं. जैसे मध्याह्न भोजन, ड्रेस, मुफ्त किताबें और कई राज्यों में साइकिल तक बांटी जाती हैं. इस अधिकार से आने वाले सालों में गांवों की सूरत बदल जायेगी.

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